Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog हर दिन पावन गुरु तेग बहादुर जी “1 अप्रेल/जन्मदिन”
हर दिन पावन

गुरु तेग बहादुर जी “1 अप्रेल/जन्मदिन”

गुरू तेग बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल, 1621 (वैशाख कृष्ण पंचमी विक्रमी संवत 1678) को गुरु हरगोबिंद साहिब और माता नानकी के यहाँ हुआ था।

उन्होने काश्मीरी पंडितों तथा अन्य हिन्दुओं को बलपूर्वक मुस्लिम बनाने का विरोध किया। 1675 में मुगल शासक औरंगज़ेब ने उन्हे इस्लाम स्वीकार करने को कहा। पर गुरु साहब ने कहा कि सीस कटा सकते हैं, केश नहीं। इस पर औरंगजेब ने सबके सामने उनका सिर कटवा दिया। गुरुद्वारा शीश गंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उन स्थानों का स्मरण दिलाते हैं जहाँ गुरुजी की हत्या की गयी तथा जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया था।

गुरुजी का बलिदान केवल धर्म पालन के लिए नहीं अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए दिया था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था। इसलिए

उनका बलि चढ़ जाना व विकेरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था।

आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतन्त्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग बहादुरजी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। यह गुरुजी के निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। गुरुजी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतन्त्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रान्तिकारी युग पुरुष थे।

11 नवम्बर, 1675 ई॰ (भारांग: 20 कार्तिक 1597 ) को दिल्ली के चांदनी चौक में काज़ी ने फ़तवा पढ़ा और जल्लाद जलालदीन ने तलवार से गुरु साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया। किन्तु गुरु तेग़ बहादुर ने अपने मुँह से सी’ तक नहीं कहा। आपके अद्वितीय बलिदान के बारे में गुरु गोविन्द सिंह जी ने ‘बिचित्र नाटक में लिखा है-

तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ कीनो बडो कलू महि साका॥

साधन हेति इती जिनि करी॥ सीसु दीया परु सी न उचरी॥

धरम हेत साका जिनि कीआ॥ सीसु दीआ परु सिररु न दीआ॥ (दशम ग्रंथ)

Exit mobile version