सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 14
मेघालय के राजा जो सन् 1829 से सन् 1833 तक अंग्रेजों के लिए आतंक बने रहे…
अंग्रेजों ने गुवाहाटी और सिलहट में अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी तथा उन्हें और मजबूत कर दिया। यह सब देख कर तिरोत सिंह को अंग्रेजों की वास्तविक मंशा पर सन्देह होने लगा। उन्हें ये विश्वास होने लगा कि अंग्रेज वास्तव में पूरे खासी पहाड़ी क्षेत्र पर आधिपत्य करना चाहते हैं।
तिरोत सिंह को अंग्रेजों की यह कुटिल चाल समझ में आते ही उन्होंने तुरंत अंग्रेजों को नोंगख्लाव छोड़कर जाने के लिए कहा। परंतु अंग्रेजों ने उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपने मंसूबे पूरा करने में लगे रहे।
इसी समय मेघालय के एक अन्य छोटे राज्य राणी के राजा बलराम सिंह ने बोरद्वार पर अपना दावा कर दिया, जबकि यह स्थान अंग्रेज पहले ही तिरोत सिंह को देने का वादा कर चुके थे।
दिसंबर 1828 में बोरद्वार पर अपना दावा मजबूत करने के लिए तिरोत सिंह अपने सैनिकों के साथ वहाँ के लिए रवाना हो गए। मार्ग में अंग्रेजों ने बड़ी सेना के साथ उनका रास्ता रोक लिया और उन्हें वापस जाने के लिए कहा।
इस घटना से तिरोत सिंह कुपित तो हुए ही; साथ ही, उन्हें अब अंग्रेजों की कुटिल मंशा पर तनिक भी सन्देह नहीं रहा।
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