सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 13
बाजी राउत अपनी आजीविका ब्राह्मणी नदी में नाव चला कर अर्जित करते थे। वह लोगों को इस पार से उस पार ले जाकर गुजारे योग्य पैसे कमा लेते थे।
जब अंग्रेजों ने अपना जुल्म बढ़ा दिया, तो बाजी राउत और उनके अन्य साथी नाविक सावधान हो गए थे और उन्होंने प्रजामंडल के साथ मिलकर निश्चय किया कि वे अपनी नावों से अंग्रेज और उनके साथीयों को नदी के पार नहीं ले जाएँगे। यह एक तरह का ‘असहयोग आंदोलन’ ही था।
10अक्टूबर, 1938 की रात वर्षा हो रही थी; बाजी राउत नदी के तट पर अपनी नाव में सो रहे थे। पिछले 3 दिन से वह रात को नाव पर ही प्रजामंडल के अन्य सदस्यों के साथ सो रहे थे। एक दिन पहले ही अंग्रेजों ने वहाँ से मात्र 2 किलोमीटर दूर भुवन गाँव में ग्रामीणों के एक समूह पर गोली चला कर दो लोगों की हत्या कर दी थी। उनका अपराध मात्र यह था कि वे अंग्रेजों के लिए बेगार करने को तैयार नहीं थे।
11अक्टूबर, 1938 को मुँह अंधेरे समय अंग्रेज ब्राह्मणी नदी के किनारे पर पहुँचे। बाजी राउत की नाव के पास आकर उन्हें जगाया और पार ले जाने के लिए कहा। बाजी राउत ने यह कहते हुए स्पष्ट मना कर दिया कि उनकी नाव केवल मात्र प्रजामंडल के लोगों के लिए है, और निर्दोष जनता के हत्यारों को वह कभी भी नदी पार नहीं ले जा सकते।
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