सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 9
बीजापुर सल्तनत के साथ युद्ध
राजनर्तकी का पिता भरामें मावुता बीजापुर के सुल्तान के साथ जा मिला। उसने सुल्तान को केलाड़ी पर आक्रमण करने के लिए तैयार कर लिया। सुल्तान एक विशाल फौज लेकर रानी चेन्नम्मा पर आक्रमण करने निकल पड़ा।
केलाड़ी में दो बड़े मजबूत किले बिदानूर और भुवनगिरी थे। बिदानूर तो राज्य की राजधानी था जबकि भुवनगिरी एक बड़े जंगल से घिरा हुआ था। भुवनगिरी किले की रक्षा करना उसके आसपास फैले भयंकर जंगल के कारण आसान था, साथ ही वहाँ का रास्ता भी बहुत दुर्गम था।
रानी चेन्नम्मा जानती थी कि सुल्तान की बड़ी फौज से राजधानी बिदानूर में रहकर प्रतिकार करना मुश्किल होगा जबकि भुवनगिरी इस उद्देश्य के लिए एक बहुत उचित जगह थी।
उन्होंने अपने मंत्रियों और सरदारों की सहायता से सारा खजाना, राज्य का सिंहासन और अन्य आवश्यक चीजें भुवनगिरी के किले में पहुंचा दीं। वह स्वयं और उनके विश्वस्त सरदार भी अपने सैनिकों के साथ भुवनगिरी के आसपास ही तैनात हो गए। यहाँ पर रानी चेन्नम्मा के कई ऐसे सरदार, जो कि पहले उनके विरोध में थे, अपनी गलती का एहसास करते हुए राज्य की रक्षा करने के लिए पहुँच गए।
उधर जब सुल्तान की फौजें बिदानूर किले में पहुँची तो उन्हें वहाँ कुछ भी नहीं मिला। सुल्तान ने अब अपनी फौजों को यहाँ से भुवनगिरी पर हमला करने का निर्देश दिया। भुवनगिरी पहुँचने का रास्ता दुर्गम था और चारों ओर से जंगल से घिरा हुआ था।
रानी चेन्नम्मा जानती थी कि सुल्तान किस मार्ग से आएगा। इसलिए उन्होंने एक ‘तंग दर्रे’ का चुनाव करके अपनी सेना को वहाँ आसपास तैनात कर दिया। उस तंग दर्रे से गुजरती हुई बीजापुर की फौज पर रानी चेन्नम्मा ने आक्रमण किया। वहाँ भयंकर युद्ध में सुल्तान की फौज बुरी तरह पराजित हुई और उसके शेष सैनिक किसी प्रकार बचते बचाते वापस बीजापुर पहुँचे।
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