उदयपुर समाचार

पारिवारिक पारम्परिक मूल्यों के भारत को फिर से गढ़ने की आवश्यकता – डॉ. दिनेश

उदयपुर, 16 नवम्बर। ‘धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो। प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो…।’ भारत में प्रतिदिन आरती के साथ दोहराए जाने वाले इस सूत्र में ही भारत का दृष्टिकोण निहित है। भारत विश्व कल्याण का विचार रखता है और हर प्राणी के मंगल की कामना करता है। और यह विचार आज से नहीं, अपितु अनादि काल से हर भारतीय की जीवन परम्परा में शामिल है। इसी परम्परा के सूत्रों का भारत गढ़ने की आज महती आवश्यकता है। भारत इसी सूत्र के साथ मार्गदर्शक बनकर अखिल विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगा। 

यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय ग्राम विकास संयोजक डॉ. दिनेश ने बुधवार को यहां विद्या निकेतन सेक्टर-4 स्थित भागीरथ सभागार में शहर के प्रबुध नागरिकों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भारत की परिवार रचना ही भारत की संस्कृति है जो आज भी अक्षुण्ण है। इसी परिवार रचना में हर समस्या का समाधान छिपा है। चाहे कोरोना के कष्टदायी काल की बात हो, वैश्विक मंदी की बात हो या व्यक्ति के समक्ष उपस्थित होने वाली कोई भी अन्य समस्या, भारत की परिवार रचना ने ही उसका समाधान किया है। संकट के समय घर की महिला अपनी स्वयं की बचत चाहे वह राशि के रूप में हो या गहनों के रूप में, प्रस्तुत करते देर नहीं करती और परिवार को संकट से संभलने का सामर्थ्य प्रदान करती है। माता की रसोई में औषधियां और उसके पारम्परिक ज्ञान में आयुर्वेद शामिल है। भारतीय महिला परिवार रचना की धुरी हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था की भी सशक्त स्तम्भ हैं। उन्होंने नोबेल विजेत अमर्त्य सेन के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि सेन ने अपने शोध में लिखा, पूर्वी भारत तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब तक कि वहां की महिला शक्ति की सक्रिय भागीदारी नहीं होती। डॉ. दिनेश ने इसकी व्याख्या दूसरी तरह से करते हुए कहा कि इसका अर्थ यह भी कहा जा सकता है कि भारत की अनपढ़ महिला भी अर्थशास्त्र को भली भांति जानती है। डॉ. दिनेश ने इसे भारत के अर्थशास्त्र का ई-वैशिष्ट्य बताया। 

डॉ. दिनेश ने दूसरे नोबेल विजेता सूरजपाल नेहपाल के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि भारत का मूल आदमी परिवार के लिए जीता है, अपने समाज के लिए जीता है, गांव के लिए जीता है, उसकी सोच व्यापक है, सर्वजनहिताय का संस्कार उसमें परिवार से ही है। 

उन्होंने कहा कि परिवार रचना मजबूत होगी तो हर कार्य सिद्ध होगा। आज के समय में हमारे शस्त्र मिसाइल या बम नहीं, अपितु संस्कृति, सभ्यता, व्यक्ति और परिवार हैं। भारत की इकाई परिवार है। परिवार का संकट भारत का संकट है, भारत का संकट सम्पूर्ण विश्व का संकट है। इसे यूं भी समझा जा सकता है कि जहां पर परिवार रचना नहीं है, वहां वयोवृद्ध व्यक्तियों को संभालने वाला कोई नहीं है। परिवार रचना ही संस्कारों की शिक्षक है। किशोरवय तक परिवार और गुरुकुल पद्धति से मिलने वाले संस्कार जीवन भर कायम रहते हैं। उन्होंने उपस्थित मातृशक्ति से परिवार में प्राचीन संस्कारों की पुनर्स्थापना का आह्वान किया। 

डॉ. दिनेश ने कहा कि जिस तरह भारत की परिवार-समाज की रचना की शुरुआत का ऐतिहासिक विवरण प्राप्त नहीं होता, उसी तरह भारत के जन्म का भी विवरण प्राप्त नहीं होता। अतः भारत अजन्मा है। अन्य देशों के गठन की तारीखें इतिहास की पुस्तकों में अंकित हैं, लेकिन भारत के संदर्भ में ऐसा कुछ नहीं है। प्राचीन शास्त्रों में भारत का वर्णन है, लेकिन भारत के जन्म का विवरण नहीं मिलता। ऐसे में जो अजन्मा है वह अजन्मा ही रहेगा, जिसने जन्म लिया है उसे एक दिन विलीन होना है। जो विखण्डित हुआ है उसे एक दिन जुड़ना ही है। 

उन्होंने कहा कि भले ही अंग्रेजी शासन में भारत गुलाम था, लेकिन भारत का व्यक्ति अंदर से गुलाम कभी नहीं था, जीवन मूल्यों में कभी गुलाम नहीं रहा, पहनावे से कभी गुलाम नहीं रहा। मैक्समूलर को भी कहना पड़ा था कि भारत का जीता नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि भारत के प्राचीन ज्ञान और विज्ञान को लेकर आज बड़े-बड़े शोध हो रहे हैं। भारतीय कालगणना की पद्धति आज के वैज्ञानिकों के शोध का विषय है। वेद-उपनिषदों के सूत्र आज चर्चा में हैं। पूर्व राष्ट्रपति मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम स्वयं कहते थे कि उन्होंने आविष्कारों के पीछे भगवद गीता का अध्ययन है। कम्प्यूटर के लिए भी संस्कृत को सर्वाधिक सटीक माना गया है। उन्होंने कहा कि भारत के उत्सव व्यवस्था में भी सामाजिक समरसता के सूत्र हैं। भारत की प्राचीन न्याय परम्परा भी संस्कारों और नैतिक मूल्यों से जुड़ी है। व्यक्ति मंदिर, नदी, अपनों से बड़ों की सौगंध लेकर झूठ नहीं बोल सकता था और ग्रामीण क्षेत्रों में इसी व्यवस्था से समस्याओं का समाधान हो जाता था। 

डॉ. दिनेश ने कहा कि भारतीय मूल के लोग जहां भी जिस भी देश में बसे हैं, वे वहां के विकास की धारा के मुख्य वाहक में माने जाते हैं। उन्होंने इंगलैंड का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां 2 प्रतिशत भारतीय मूल के परिवार वहां के विकास के 10 प्रतिशत में योगदान रखते हैं और उनका आपराधिक ग्राफ है ही नहीं। यह भारत के मूल संस्कारों की ही देन है। उन्होंने कहा कि जिस जगह जिस देश में भारतीय मूल के 2 प्रतिशत परिवार भी हो जाएंगे, वह देश वह स्थान विश्व कल्याण के विचार का वाहक बन जाएगा। विश्व कल्याण के संस्कारों से सुसज्जित भविष्य का भारत ही दुनिया का भविष्य है। 

कार्यक्रम का आरंभ ‘वसुंधरा परिवार हमारा, हिन्दू का यह विशाल चिंतन। इस वैश्विक जीवन दर्शन से, मानव जाति होगी पावन।’ भाव गीत से हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महानगर संघचालक गोविन्द अग्रवाल ने मुख्य वक्ता का अभिवादन व आभार प्रकट किया। 

सादर प्रकाशनार्थ

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