सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 9
औरंगजेब की सेनाओं के साथ युद्धः
औरंगजेब ने अपना एक दूत हीरे जवाहरात और अन्य बहुमूल्य उपहारों के साथ रानी चेन्नम्मा के दरबार में भेजा। उसका उद्देश्य था कि रानी चेन्नम्मा छत्रपति शिवाजी महाराज के छोटे पुत्र राजाराम को उसे सौंप दें।
जिस समय तक यह दूत रानी चेन्नम्मा के दरबार में पहुँचा, उसे पहले ही रानी चेन्नम्मा राजाराम को सुरक्षित जिंजी किले में पहुँचा चुकी थीं। रानी ने राजाराम को औरंगजेब को सौंपने से स्पष्ट मना कर दिया।
औरंगजेब इस बात से क्रोधित हो गया और उसने अपने पुत्र अजमत आरा के नेतृत्व में एक बड़ी सेना केलाड़ी पर आक्रमण के लिए भेज दी।
रानी इस आक्रमण के लिए तैयार थीं। उन्होंने केलाड़ी की ओर आने वाले जंगल के रास्तों में पहले से ही छापामार युद्ध की तैयारी कर रखी थी। मुगल फौजें अपने साथ बड़ा हरम और लाव-लश्कर लेकर चलते थे, इसलिए उनकी गति भी धीमी होती थी और उन्हें प्रतिक्रिया करने में भी समय लगता था।
रानी चेन्नम्मा ने इसी का लाभ उठाते हुए अजमत आरा की फौज को बहुत हानि पहुँचाई। अजमत किसी भी तरह कोशिश करके रानी चेन्नम्मा से पार पाने में असफल रहा। एक स्त्री के हाथों पराजित होने का भय उसे सताने लगा। रानी की सेना ने मुगलों के बहुत से हाथी, घोड़े और अन्य सैन्य साजो सामान को अपने कब्जे में कर लिया था।
इसी बीच औरंगजेब ने अजमत को एक पत्र लिखकर केलाड़ी से वापस आने को कहा। जिसके बाद अजमत ने तुरंत एक संधि पत्र रानी को भिजवाया।
रानी ने सब कुछ विचार कर और सारी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर इस संधि प्रस्ताव को मान लिया। अजमत अपनी बची-खुची फौज लेकर वहाँ से रवाना हो गया। यदि औरंगजेब का पत्र न आया होता तो सम्भवतः एक स्त्री के हाथों मुगलों की करारी हार होती।
रानी चेन्नम्मा ने मीरजान किले का निर्माण भी करवाया था। सन् 1696 में अपनी मृत्यु के समय तक उन्होंने केलाड़ी पर राज किया।
महान वीरांगना रानी चेन्नम्मा को हमारा कोटि कोटि नमन्। उनके अदम्य साहस, सूझबूझ और उनकी वीरता को कृतज्ञ भारत सदैव स्मरण करेगा, ऋणी रहेगा।
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