सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 14
मेघालय के राजा जो सन् 1829 से सन् 1833 तक अंग्रेजों के लिए आतंक बने रहे…
ब्रह्मपुत्र घाटी से कछार और बराक घाटी तक जाने वाली सड़क बहुत पहाड़ी, कठिन और दुर्गम क्षेत्र वाली थी। दोनों घाटियों को जोड़ने वाली कोई सीधी सड़क भी नहीं थी।
यांदबू की संधि होने से पहले ही अंग्रेज बराक घाटी में अपना वर्चस्व स्थापित कर चुके थे। अंग्रेजों को दोनों घाटियों के बीच में संपर्क बनाए रखने में बहुत कठिनाई होती थी और बहुत समय लगता था। वे चाहते थे कि दोनों घाटियों के बीच गुवाहाटी से सिलहट तक सीधी सड़क बन जाए, ताकि उनका कार्य सुगम हो जाए। यह सड़क खासी पहाड़ियों से होकर गुजरने वाली थी ताकि समय और दूरी दोनों कम हो सके।
उत्तरी क्षेत्र के ब्रिटिश पोलिटिकल एजेंट खासी पहाड़ियों में से होते हुए सड़क बनाने की अनुमति लेने के लिए रजा तिरोत सिंह के पास गए। उन्होंने इस सड़क पर खासी लोगों को खुले व्यापार का वादा किया। यही नहीं, उन्होंने मेघालय और असम की सीमा पर स्थित बोरद्वार भी तिरोत सिंह को देने का वादा किया।
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