श्रुतम्

तिरोत सिंह-6

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 14

मेघालय के राजा जो सन् 1829 से सन् 1833 तक अंग्रेजों के लिए आतंक बने रहे…

तिरोत सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 4 अप्रैल, 1829 को खासी सेना ने तिरोत सिंह के नेतृत्व में नोंगख्लाव में अंग्रेजों की छावनी पर आक्रमण कर दिया। अनेक अंग्रेज अफसर मारे गए।
अंग्रेजों ने तुरंत तोपों और बंदूकों के साथ सिपाही वहाँ रवाना कर दिए।

खासी सैनिक परंपरागत अस्त्र शस्त्र जैसे तलवार, ढाल, तीर कमान आदि के साथ लड़ते थे। इन परंपरागत हथियारों से अंग्रेजों की आधुनिक हथियारों से युक्त सेना का सामना करना कठिन था।
खुले युद्ध में खासी सेना को बहुत हानि हुई और उनके अनेक योद्धा मारे गए।

तिरोत सिंह समझ गए की सीधे युद्ध में उन्हें हानि ही होगी और वे अंग्रेजों पर ऐसे नहीं विजय पा सकेंगे। उन्होंने अपने मुख्य योद्धाओं और सरदारों के साथ विचार विमर्श किया और फिर छापामार (गुरिल्ला युद्ध) करने का निर्णय लिया।

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