संघर्षप्रिय एवं जुझारू मधुसूदन जी “19 मई/जन्म-दिवस”
मधुसूदन जी का जन्म 19 मई, 1956 को ग्राम सीसवाली (जिला बारां, राजस्थान) में श्री प्रभुलाल मोरवाल के घर में हुआ था। घर में कुछ खेती भी थी; पर उनके परिवार में बाल काटने का पुश्तैनी काम होता था। यद्यपि नयी पीढ़ी के लोग शिक्षित होकर निजी और सरकारी सेवाओं में भी जा रहे थे। अपने गांव में रहते हुए उन्होंने ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ के माध्यम से छात्रों के हित में संघर्ष किया। इससे वे शीघ्र ही विद्यार्थियों के बीच लोकप्रिय हो गये।
1973 से 75 तक वे राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, सीसवाली में छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे। इस दौरान उनके कार्य से छात्र और अध्यापकों के साथ ही क्षेत्र के अन्य बड़े लोग भी प्रभावित हुए। छात्र संघ का कार्य करते हुए उनका संपर्क संघ से हुआ। वे संघ के उद्देश्य तथा कार्यशैली से बहुत प्रभावित हुए। अब वे विद्यार्थी परिषद के साथ ही संघ में भी सक्रिय हो गये।
इसी समय 1975 में देश में आपातकाल लग गया। संघ पर प्रतिबंध के कारण इस समय प्रत्यक्ष शाखा का काम स्थगित था; पर तानाशाही के विरुद्ध हो रहे संघर्ष में रीढ़ की भूमिका संघ के कार्यकर्ता ही निभा रहे थे। भूमिगत पर्चे एवं समाचार पत्रों को छापकर उन्हें सामान्य जनता, पुलिस, प्रशासन और समाज के प्रमुख लोगों तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य स्वयंसेवक ही कर रहे थे।
सत्याग्रह एवं जेल भरो आंदोलन के ऐसे भीषण दौर में मधुसूदन जी ने भी सत्याग्रह कर अपनी गिरफ्तारी दी। संघ से प्रतिबन्ध हटाओ, लोकतंत्र अमर रहे, जयप्रकाश जिन्दाबाद, तानाशाही मुर्दाबाद.. आदि नारों से उन्होंने आकाश गुंजा दिया। प्रशासन ने उन्हें कोटा की केन्द्रीय कारागर में बंद कर दिया।
जेल के नाम से मन में अनेक आशंकाएं जन्म लेती हैं; पर आपातकाल में संघ के स्वयंसेवकों के लिए जेल प्रशिक्षण केन्द्र जैसे बन गये थे। वहां वरिष्ठ कार्यकर्ता छोटे तथा नये कार्यकर्ताओं को शारीरिक तथा बौद्धिक का प्रशिक्षण देते थे। इसके साथ ही वे कार्यकर्ताओं की जिज्ञासाओं का समाधान कर उनका वैचारिक पक्ष भी मजबूत करते थे।
एक परिवार की तरह रहने के कारण वहां सदा मौज-मस्ती का माहौल बना रहता था। कई कार्यकर्ताओं की आंतरिक प्रतिभाओं का वहां विकास हुआ। जेल में बंद अन्य विचारधारा के लोग भी संघ के संपर्क में आये, जिससे उनके मन के भ्रम दूर हुए। जेल में रह रहे अन्य संस्थाओं तथा राजनीतिक दलों के लोग प्रायः दुखी रहते थे; पर स्वयंसेवक दोनों समय की शाखा और अन्य गतिविधियों में व्यस्त रहते थे। छात्र वहां रहकर अपनी पढ़ाई भी करते थे।
इस वातावरण में मधुसूदन जी के विचार परिपक्व हुए और उन्होंने प्रचारक बनने का संकल्प लिया; पर इसमें उनका गृहस्थ-जीवन बाधक था। उन्होंने अपनी पत्नी तथा घर वालों को समझा कर अपने संकल्प में सहयोग देने के लिए तैयार कर लिया।
मधुसूदन जी नये लोगों से शीघ्र ही मित्रता कर लेते थे। शारीरिक तथा व्यवस्था संबंधी कार्यों में भी उनकी रुचि थी। वे धौलपुर, बयाना, हिंडौन सिटी, जोधपुर, बाड़मेर आदि स्थानों पर जिला प्रचारक रहे। इसके बाद कुछ समय उन्होंने श्रीगंगानगर में विभाग प्रचारक के नाते काम किया। वर्ष 2000 में उन्हें ‘भारतीय किसान संघ’ में जयपुर प्रांत का संगठन मंत्री बनाया गया।
भारतीय किसान संघ का काम करते हुए उनके जीवन में कुछ मानसिक कष्ट और अवसाद के क्षण आये, जिनके कारण 27 जून, 2002 को उनका दुखद देहांत हो गया।
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