महान योद्धा महाराणा प्रताप जयंती “ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया”
महाराणा प्रताप का जन्म भारतीय पंचांग के हिसाब से ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को ही मनाई जाती है।
महान योद्धा महाराणा प्रताप की वीरता को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा महराणा प्रताप ने आखिरी सांस तक मेवाड़ की रक्षा की। अकबर ने 30 साल तक उनको बंदी बनाने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। महाराणा प्रताप को भारत का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी भी कहा जाता है।
महाराणा प्रताप, राणा सांगा के पौत्र थे। उन्होंने अपने वंशजों को वचन दिया था कि जब तक वह चित्तौड़ हासिल नहीं कर लेते, तब तक वह पुआल पर सोएंगे और पत्ते पर खाएंगे। आखिर तक महाराणा प्रताप को चित्तौड़ वापस नहीं मिला। उनके वचन का मान रखते हुए आज भी कई राजपूत अपने खाने की प्लेट के नीचे एक पत्ता रखते हैं और बिस्तर के नीचे सूखी घास का तिनका रखते हैं। मायरा की गुफा में महाराणा प्रताप ने कई दिनों तक घास की रोटियां खाकर वक्त गुजारा था। महाराणा प्रताप का पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था। सात फीट 5 इंच की कद काठी वाले महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलो, उनकी दो तलवारें जिनका वजन 208 किलोग्राम और कवच लगभग 72 किलोग्राम का था। हल्दी घाटी के युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। इस युद्ध के 300 साल बाद भी उस जगह तलवारें पाई गईं। महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक वफादारी के लिए जाना जाता है। हर युद्ध में चेतक ने महाराणा का साथ निभाया। एक बार युद्ध में चेतक ने अपना पैर हाथी के सिर पर रख दिया और हाथी से उतरते समय चेतक का एक पैर हाथी की सूंड में बंधी तलवार से कट गया। पैर कटे होने के बावजूद महाराणा को सुरक्षित स्थान पर लाने के लिए चेतक बिना रुके दौड़ा। रास्ते में 100 मीटर के दरिया को भी एक छलांग में पार कर लिया।
मुगलों ने कई बार महाराणा प्रताप को चुनौती दी लेकिन मुगलों को मुंह की खानी पड़ी। आखिरकार, युद्ध और शिकार के दौरान लगी चोटों की वजह से महाराणा प्रताप की मृत्यु 19 जनवरी 1597 को चावंड में हुई।
Leave feedback about this