सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-18
निडर मणिपुरी सेनापति जिन्होंने सन् 1891 में अंग्रेजों के विरुद्ध घमासान युद्ध लड़ा…
खोंगजॉम, जहाँ पर यह अंतिम एंग्लो मणिपुर युद्ध लड़ा गया, इंफाल से 36 कि.मी दूर थौबॉल जिले में भारत बर्मा सड़क पर पड़ता है।
इसी पहाड़ी की तलहटी में पावना ब्रजवासी और उनके साथ तीन सौ बहादुर मणिपुरी सैनिकों ने अंग्रेजों से अपनी अंतिम श्वांस तक संघर्ष किया और वीरगति पाई थी।
यहीं पर खेबा पहाड़ी के ऊपर एक युद्ध स्मारक बनाया गया है। यहां प्रतिवर्ष 23 अप्रैल को मणिपुर में अमर शहीदों की स्मृति में ‘खोंगजॉम दिवस’ मनाया जाता है।
मात्र उनके इस युद्ध के अतिरिक्त पावना ब्रजवासी के विषय में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। वह मणिपुर सेना में मेजर के समकक्ष सेनापति थे।
बर्मा ने सन् 1819 में मणिपुर पर अधिकार कर लिया था। सन् 1824 में ब्रिटिश सेना और बर्मा सेना के बीच युद्ध आरम्भ हो गया। युद्ध में अन्ततः अंग्रेज विजयी रहे, और सन् 1826 में यांदबू की संधि हुई।
अंग्रेजों को बर्मा के साथ युद्ध पर इसलिए जाना पड़ा, क्योंकि उन्हें डर था कि बर्मा सेना बंगाल के लिए खतरा बन सकती है। तत्समय हजारों मणिपुरी सैनिकों ने इस युद्ध में अंग्रेजों का साथ इसलिए दिया था, क्योंकि अंग्रेजों ने वादा किया था कि यदि वे जीत जाते हैं तो वे मणिपुर की स्वतंत्रता अक्षुण्य बनाए रखेंगे।
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