भारत को रक्तरंजित करने का षड्यंत्र-25

विध्वंसक चौकड़ी के निशाने पर आदिवासी (वनवासी)-8

नागालैंड

‘चूँकि वनवासियों के ईसाईकरण का कार्य ब्रिटिश सरकार के हितों की पूर्ति करता है; इसलिए, असम के तत्कालीन गवर्नर राबर्ट नील रीड और नागा हिल्स जिले के डिप्टी कमीशनर सी. एल. पावसे जैसे प्रमुख औपनिवेशिक अफसरों ने सक्रिय रूप से मिशनरियों को वनवासीयों का धर्मांतरण करने प्रोत्साहित किया।’ (Rajkhowa, 2008)

भारत के पर्वतीय क्षेत्र और बर्मा (आज के म्यांमार) को मिला कर एक पृथक उपनिवेश बनाना ब्रिटिश राजशाही का एक उद्देश्य था। इसी विचार के तहत अंग्रेजों ने वनवासियों के बीच गैर वनवासियों के विषय में घृणा का बीज बोया, और अलगाववादी आंदोलनों को प्रोत्साहन दिया।
इन अधिकारियों का विचार था, कि अपने इस उद्देश्य को पूरा करने लिए उनके पास काफी समय है; परन्तु, यह अब सबको पता है कि ब्रिटिश लोग नियत समय के पूर्व ही भारत छोड़ गए। अतः इनका पूर्वोत्तर क्षेत्र में जो उद्देश्य था; वो पूरा नहीं हुआ। फिर भी, वे स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी, इन क्षेत्रों में अपने कुत्सित उद्देश्य को आगे बढ़ाने में लगे रहे..।

इस सन्दर्भ में, अंग्रेज चाय- बागान मालिकों के संरक्षण में, दो ब्रिटिश पत्रकार डोनाल्ड वाइज़ और गेविन यंग, अलगाववादी नागा तत्वों के बीच अपना नेटवर्क स्थापित करने में सफल रहे।
इसके अंतर्गत पादरी माइकल स्कॉट जैसे ब्रिटिश मिशनरी इन अलगाववादी नेताओं के मित्र बन गए। ‘इन्होंने रेड क्रास के बक्सों की आड़ में इन आतंकवादी गुटों को घातक हथियार पहुँचाए। ईसाई मिशनरियों द्वारा उपलब्ध कराए गए इन हथियारों ने न केवल मौत और तबाही मचाई, बल्कि, पूर्वोत्तर के राज्यों को दशकों लंबी उथल- पुथल और अस्थिरता की अंधी सुरंग में धकेल दिया।’

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