गुंडाधुर उर्फ बागाधुर “बस्तरकेनायक”
बस्तर के जनजाति नायक गुण्डाधुर ने वर्ष 1910 में जनजातीय समाज के आंदोलन ‘भूमकाल’ का नेतृत्त्व किया था।
जब अंग्रेजों द्वारा जनजातियों पर अत्याचार होने लगे एवं उनके मतांतरण के प्रयास किए जाने लगे। तब ऐसी स्थिति में, गुण्डाधुर के नेतृत्त्व में अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र आंदोलन शुरु किया गया, जिसे भूमकाल आंदोलन का नाम दिया गया।

गुण्डाधुर ने 3 फरवरी 1910 को चिंगपाल सभा में खोड़िया धुर और तत्कालीन राजा रुद्र प्रताप देव के चाचा लाल कालेंद्र सिंह के नेतृत्व में लगभग 65 गाँव के जनजाति युवकों को जोड़कर भूमकाल आंदोलन का नेतृत्त्व किया।

गुण्डाधुर के जन्म-मृत्यु से संबंधित साक्ष्य एवं अंग्रेजों के साथ हुए उनके संघर्ष के कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है, लेकिन जनजाति समाज में प्रचलित लोककथा, कहानियों एवं लोकगीतों के माध्यम से वे आज भी हमारे बीच में ही हैं। लोक किवदंती अनुसार, गुण्डाधुर का जन्म बस्तर के एक छोटे से गाँव चांयकुर (नेतानार) में धुरवा जनजाति समुदाय में हुआ था।

25 फरवरी 1910 के अलनार में हुए संघर्ष में कई जनजाति मारे गए, इसी दौरान डेबरी धुर को बंदी बना लिया गया। इसके विरोध में वीर गुंडाधुर ने 21 अंग्रेजों को मौत के घाट उतार कर इसका बदला लिया। आंदोलन की शुरूआत पुलिस चौकियों और सरकारी कार्यालयों पर हमले व बाजारों की लूट के रुप में हुई।
गुण्डाधुर के भय ने अंग्रेजों को इस हद तक परेशान किया था कि कुछ समय के लिए अंग्रेजों को गुफाओं में भी छिपना पड़ा था।

अंग्रेजों के लाख प्रयासों के बाद भी गुण्डाधुर उनके हाथ नहीं लगे। अंततः अंग्रेजों को गुण्डाधुर की फाइल इस टिप्पणी के साथ बंद करनी पड़ी कि “कोई यह बताने में समर्थ नहीं है कि गुण्डाधुर कौन था।”
बस्तरवासी प्रतिवर्ष 10 फरवरी को गुण्डाधुर की स्मृति में भूमकाल दिवस मनाते हैं। वर्ष 2014 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजपथ पर निकली छत्तीसगढ़ की झांकी के केंद्र में गुण्डाधुर को रखा गया था।

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