पुण्यतिथि हर दिन पावन

सतत सक्रिय मोती सिंह राठौड़ “21 जनवरी/पुण्य-तिथि”


सतत सक्रिय मोती सिंह राठौड़ “21 जनवरी/पुण्य-तिथि”

संघ कार्य को एक बार मन और बुद्धि से स्वीकार करने के बाद आजीवन उसे निभाने वाले कार्यकर्ताओं की एक लम्बी शृंखला है। राजस्थान में श्री मोती सिंह राठौड़ ऐसे ही एक कार्यकर्ता थे।

मोती सिंह जी का जन्म 40 घरों वाले एक छोटे से ग्राम ठिठावता (जिला सीकर) में चैत्र शुक्ल 13, वि0संवत 1985 (अपै्रल 1928) में हुआ था। यहां के शिक्षाप्रेमी बुजुर्गों ने बच्चों को पढ़ाने के लिए अपनी ओर से दस रु0 मासिक पर एक अध्यापक को नियुक्त किया। उसके भोजन व आवास की व्यवस्था भी गांव में ही कर दी गयी। इस प्रकार गांव में अनौपचारिक शिक्षा एवं विद्यालय की स्थापना हो गयी। आगे चलकर सीकर राजघराने ने विद्यालय चलाने की जिम्मेदारी ले ली। इससे शैक्षिक वातावरण में और सुधार हुआ।

इसी विद्यालय से कक्षा चार की परीक्षा उत्तीर्ण कर मोती सिंह जी और उनके बड़े भाई सीकर के माधव विद्यालय में भर्ती हो गये। दोनों भाई पढ़ने में तेज थे। अतः उन्हें पांच रु0 मासिक छात्रवृत्ति मिलने लगी तथा वे विद्यालय के छात्रावास में रहने लगे। पढ़ाई के साथ ही वे खेल, नाटक तथा अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में भी आगे रहते थे।

उन्हें कविता लिखने का भी शौक था। कल्याण हाईस्कूल के एक कार्यक्रम में उन्होंने छात्रावास की दुर्दशा पर राजस्थानी बोली में एक कविता सुनाई। इसके लिए उन्हें पुरस्कार तो मिला ही, साथ में छात्रावास की हालत भी सुधर गयी। इंटर करने के बाद वे अध्यापक हो गये तथा क्रमशः एम.एड. तक की शिक्षा पायी।

कक्षा नौ में पढ़ते समय सीकर में वे संघ के सम्पर्क में आये। जयपुर में हाई स्कूल की परीक्षा देते समय वहां पान के दरीबे में लगने वाली शाखा के शारीरिक कार्यक्रमों एवं देशभक्तिपूर्ण गीतों से वे बहुत प्रभावित हुए।

नवलगढ़ से इंटर करते समय अजमेर से पढ़ने और शाखा का काम करने आये श्री संतोष मेहता के सान्निध्य में रहते हुए संघ से उनके संबंध और प्रगाढ़ हो गये। 1947 में प्रथम वर्ष संघ शिक्षा वर्ग करने केे बाद वे प्रचारक बन गये।

पर जनवरी 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबन्ध लग गया। संघ की योजना से वे सीकर के ‘श्री हिन्दी विद्या भवन’ में अध्यापक बन गये। वहां रहते हुए उन्होंने सत्याग्रह का सफल संचालन किया। प्रतिबन्ध के बाद 1950 में उन्होंने द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण लिया। 1953 में बिसाऊ में सरकारी अध्यापक के नाते उनकी नियुक्ति हो गयी।

1982 में सेवा निवृत्ति के 30 वर्ष में उन्होंने प्राचार्य से लेकर जिला शिक्षाधिकारी तक अनेक जिम्मेदारियां निभाईं। वे जहां भी रहे, संघ को भी भरपूर समय देते रहे। अध्यापक जीवन में उन्होंने कठोरता व पूर्ण निष्ठा से अपने कर्तव्य का पालन किया। इस कारण कांग्रेस की सत्ता होने पर किसी ने उनकी ओर उंगली नहीं उठाई।

सेवा निवृत्ति के बाद वे पूरा समय संघ को ही देने लगे। सीकर विभाग कार्यवाह रहते हुए वे इतना प्रवास करते थे कि वरिष्ठ अधिकारियों को वहां प्रचारक देने की आवश्यकता ही नहीं हुई। इसके बाद वे जयपुर प्रांत कार्यवाह और फिर राजस्थान क्षेत्र के कार्यवाह रहे। उनके समय में दूरस्थ क्षेत्रों में भी संघ शाखाओं में वृद्धि हुई। सभी आयु वर्ग के स्वयंसेवकों में वे लोकप्रिय थे।

आयु संबंधी अनेक समस्याओं के कारण जब उन्हें प्रवास में कठिनाई होने लगी, तो उन्होंने क्षेत्र कार्यवाह के दायित्व से मुक्ति ले ली; पर कार्यकर्ता उन्हें छोड़ना नहीं चाहते थे। अतः सबके आग्रह पर उन्होंने सीकर विभाग संघचालक का दायित्व स्वीकार किया। एक बार वे सीकर संघ कार्यालय में गिर गये। इससे उनके मस्तिष्क में चोट आ गयी। जयपुर के चिकित्सालय में उनका इलाज हो रहा था। 21 जनवरी, 2009 को वहीं उनका देहांत हो गया।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video