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महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने वेदों के प्रति जो भ्रांतियां पैदा हुई उन पर प्रहार किया व उद्घोष दिया वेदों की और लौटो – हनुमानसिंह राठौड़

महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने वेदों के प्रति जो भ्रांतियां पैदा हुई उन पर प्रहार किया व उद्घोष दिया वेदों की और लौटो – हनुमानसिंह राठौड़

चरित्र पूजा से ही चक्रवती व विश्वगुरु का स्थान प्राप्त हो सकता है

महर्षि दयानंद सरस्वती जी के 200 वें जयंती वर्ष के अवसर पर प्रबुधजन संगोष्ठी आयोजित हुई ।

डॉ हेडगेवार स्मृति सेवा प्रन्यास अजमेर
एवम श्री माधव स्मृति सेवा प्रन्यास अजमेर
के संयुक्त तत्वधान में रविवार , 25 फरवरी 2024 को सतगुरु इंटरनेशनल स्कूल , पृथ्वीराज नगर , पंचशील नगर अजमेर के ऑडिटोरियम में एक संगोष्ठी संपन्न हुई । प्रन्यास के अध्यक्ष जगदीश राणा ने मुख्यवक्ता एवम शिक्षाविद हनुमानसिंह राठौड़ का स्वागत किया ।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि परोपकारिणी सभा आर्य समाज से पधारे आचार्य श्री सत्यव्रत मुनि ने महर्षि दयानंद सरस्वती के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि स्वामी जी समाज जागरण,मानव जागरण के पुरोधा थे । उनके जीवन के गुण, सत्य को जानने की तीव्र इच्छा, ज्ञान प्राप्ति की उत्कंठता समाज सुधार की दिशा में उनके द्वारा किए गए प्रयास आज भी प्रासंगिक हैं ।

कार्यक्रम के मुख्यवक्ता हनुमानसिंह राठौड़ ने बताया कि स्वामीजी बाल्यकाल में वे किस प्रकार उनके मन में सत्य को जानने की इच्छा हुई, हिमालय में योग साधना द्वारा शिवत्व की खोज से किसप्रकार वे मूलशंकर से दयानंद सरस्वती बने ।

वे अपने जीवन में वैभव एवम प्रलोभन को तिलांजलि देकर सत्य की खोज में निकल पड़े। उसी का प्रणाम है कि जब देश गुलामी की दास्तान में जी रहा था । उस दौरान उन्होंने वेदों की पुनः प्रतिष्ठा स्थापित की एवम समाज में फैली कुरीतियों एवम अंधविश्वास को दूर करने का अथक प्रयास किया ।

महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित डी ए वी संस्थान के योगदान कोई भूल नहीं सकता यह सब शिक्षा के क्षेत्र में मिशनरी स्कूलों के दबदबे को कम करने एवम देश की युवा पीढ़ी को ईसाई कारण से बचाने में मील का पत्थर साबित हुए । वेदों में इतिहास ढूंढना हमारी भूल है । राष्ट्र की उत्पति तप से होती है ।

वर्ष 1875 से 1918 के दौरान देश में 1664 डी ए वी स्कूलों की जिनमें 55 स्कूल अस्पर्श
समाज के बच्चों के लिए थे । जिससे उनके बच्चों को भी शिक्षा से वंचित न किया जा सके । ऋषि परंपरा का पराभव होने से समाज ह्वास हुआ । स्वामी दयानंद सरस्वती के वेदों के प्रति जो भ्रांतियां पैदा हुई । उससे बाहर निकलने के लिए प्रयत्न किया । “कृणवंतो विश्वमार्यम” का अर्थ है वेदों के उच्चारण से जीवन जीने वाला श्रेष्ठपुरुष

राठौड़ ने कहा कि उनकी 200 वें जयंती वर्ष पर हमारा कर्तव्य है कि हम आज उनके द्वारा शुरू किए गए सामाजिक सुधार एवम जन जागरण के कार्यों को आगे बढ़ाएं ।

तत्पश्चात महानगर संघचालक खाजुलाल चौहान द्वारा कार्यक्रम में पधारे सभी महानुभाव का धन्यवाद ज्ञापित किया ।

अंत में राष्ट्रगीत वंदे मातरम के गायन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ

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