संगठन के मर्मज्ञ माधवराव देवड़े “8 मार्च/जन्म-तिथि”
बालपन में ही संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार का पावन संस्पर्श पाकर जिन लोगों का जीवन धन्य हुआ, माधवराव भी उनमें से एक थे। नागपुर के एक अति साधारण परिवार में उनका जन्म 8 मार्च, 1922 को हुआ था।
एक मन्दिर की पूजा अर्चना से उनके परिजनों की आजीविका चलती थी। मन्दिर में ही उन्हें आवास भी मिला था। इस नाते उनका परिवार पूर्ण धार्मिक था। देवमन्दिर से जुड़े रहने के कारण उनके नाम के साथ ‘देवले’ गोत्र लग गया, जो उत्तर प्रदेश में आकर ‘देवड़े’ हो गया।
माधवराव की सम्पूर्ण शिक्षा नागपुर में हुई। छात्र जीवन में वे कुछ समय कम्युनिस्टों से भी प्रभावित रहे; पर उनकी रुचि खेल और विशेषकर कबड्डी में बहुत थी। गर्मियों की छुट्टियों में जब वे मामा जी के घर गये, तो वहाँ लगने वाली शाखा में हो रही कबड्डी के आकर्षण से वह भी शाखा में शामिल हो गये। कबड्डी के प्रति उनका यह प्रेम सदा बना रहा। प्रचारकों के वर्ग में वे प्रांत प्रचारक होते हुए भी कबड्डी खेलने के लिए के मैदान में उतर आते थे।
मामा जी के घर से लौटकर फिर वे नागपुर की शाखा में जाने लगे। धीरे-धीरे उनका सम्पर्क डा. हेडगेवार से बढ़ता गया और वे कब शाखा में तन-मन से रम गये, इसका उन्हें पता ही नहीं लगा। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी, अतः घर वालों ने शिक्षा पूरी होने पर नौकरी करने को कहा।यों तो माधवराव संघ के लिए सम्पूर्ण जीवन देने का निश्चय कर चुके थे; पर वे कुछ समय नौकरी कर घर को भी ठीक करना चाहते थे। एक स्थान पर जब वे नौकरी के लिए गये, तो वहाँ लगातार काम करने का अनुबन्ध करने को कहा गया। माधवराव ने इसे स्वीकार नहीं किया और वे नौकरी को लात मार कर घर वापस आ गये।
यह 1942 का काल था। देश में गांधी जी का ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ और ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ जोरों पर था। विभाजन की आशंका से भारत भयभीत था। विश्वाकाश पर द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल भी गरज-बरस रहे थे। ऐसे में जब द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी ने युवकों से अपना जीवन देश की सेवा में अर्पण करने को कहा, तो युवा माधवराव भी इस पंक्ति में आ खड़े हुए। श्री गुरुजी ने उन्हें उत्तर प्रदेश के जौनपुर में भेजा।
उत्तर प्रदेश की भाषा, खानपान और परम्पराओं से एकदम अनभिज्ञ माधवराव एक बार इधर आये, तो फिर वापस जाने का कभी सोचा ही नहीं। उत्तर प्रदेश के कई स्थानों पर काम करने के बाद 1968 में वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रान्त प्रचारक बने। आपातकाल में शाहबाद (जिला रामपुर) में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर मीसा में जेल भेज दिया।
आपातकाल के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश और बिहार के क्षेत्रीय प्रचारक की जिम्मेदारी मिली। हर कार्यकर्ता की बात को गम्भीरता से सुनकर उसे टाले बिना उचित निर्णय करना, यह उनकी कार्यशैली की विशेषता थी। इसीलिए जो उनके सम्पर्क में आया, वह सदा के लिए उनका होकर रह गया।
श्री देवड़े जी मधुमेह से पीडि़त थे। उनका कद छोटा और शरीर हल्का था। फिर भी प्रदेश की हर तहसील का उन्होंने सघन प्रवास किया। वे कम बोलते थे; पर जब बोलते थे, तो कोई उनकी बात टालता नहीं था। प्रवास में कष्ट होने पर 1995-96 में उन्हें विद्या भारती, उत्तर प्रदेश का संरक्षक बनाया गया। इस दौरान उन्होंने अनेक शिक्षा-प्रकल्पों को नव आयाम प्रदान किये।
77 वर्ष की आयु में निराला नगर, लखनऊ में 23 अगस्त, 1998 को रात में सोते-सोते ही वह चिरनिद्रा में लीन हो गये।
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