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जयप्रकाश नारायण की धर्मपत्नी प्रभावती जी “15 अप्रैल/पुण्य-तिथि”


जयप्रकाश नारायण की धर्मपत्नी प्रभावती जी “15 अप्रैल/पुण्य-तिथि”

जयप्रकाश नारायण के नाम से तो प्रायः सभी परिचित हैं, क्योंकि 1975 में इन्दिरा गांधी द्वारा लगाये गये आपातकाल के विरोध में उनके द्वारा किया गया संघर्ष अभी बहुत पुराना नहीं हुआ है। इससे पूर्व उन्होंने गांधी जी और बाद में विनोबा भावे के साथ सर्वोदय आन्दोलन में भी काफी काम किया था; पर उनकी पत्नी प्रभावती जी का नाम प्रायः अल्पज्ञात ही है, जबकि जयप्रकाश जी को पीछे से सहारा देने में उनका योगदान भी कम नहीं है।

1906 में जन्मी प्रभावती जी के पिता जी का नाम ब्रजकिशोर बाबू था। प्रभा जी उनकी जीवित चार सन्तानों में सबसे बड़ी थीं। उनका जन्म जानकी नवमी को हुआ था। माँ फुलझड़ी देवी घरेलू महिला थीं; पर पिता जी राजनीति और स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय

प्रभावती जी पर अपने पिता जी के विचारों का भरपूर प्रभाव पड़ा। प्रभावती जी 12 साल की अवस्था तक लड़कों जैसे कपड़े पहनती थीं। बाद में दादी जी के कहने पर उन्होंने साड़ी बाँधी। प्रभावती जी गहनों, कपड़ों आदि के बदले घरेलू कार्य, पेड़-पौधों की देखभाल आदि में अधिक रुचि लेती थीं।

ब्रजकिशोर जी स्त्री शिक्षा के प्रबल पक्षधर थे। अतः उन्होंने प्रभावती जी को हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत की उच्च शिक्षा दिलायी। 1920 में प्रभावती जी का विवाह बिना तिलक और दहेज के सादगीपूर्ण रीति से जयप्रकाश जी के साथ हो गया। उस समय जयप्रकाश जी 18 और प्रभावती जी 14 वर्ष की थीं। उनका गौना पाँच साल बाद हुआ।

विवाह के बाद जयप्रकाश जी उच्च शिक्षा के लिए अमरीका चले गये, जबकि प्रभावती जी गांधी जी और कस्तूरबा के सान्निध्य में साबरमती आश्रम आ गयीं। यहाँ रह कर उन पर स्वदेशी, स्वभाषा, स्वभूषा आदि के संस्कार पड़े। उन्होंने बीमार कस्तूरबा की खूब सेवा की। बाद में इन्हीं से प्रेरित होकर उन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन के साथ ही अशिक्षा, बाल-विवाह और पर्दा प्रथा का विरोध कर नारियों को जाग्रत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

प्रभावती जी की कोई सन्तान नहीं थी; क्योंकि पति-पत्नी दोनों ने परस्पर सहमति से समाज सेवा को जीवन में सर्वाधिक महत्व देते हुए कोई सन्तान उत्पन्न न करने का निर्णय लिया था; पर प्रभावती जी समाज-सेवी संस्थाओं को ही अपनी सन्तान की तरह प्यार करती थीं।

उन्होंने अनेक बाल विद्यालयों की स्थापना की, जिनमें से कुछ कन्याओं के लिए भी थे। प्रभावती जी दहेज व्यवस्था की विरोधी थीं। उनका अपना विवाह भी ऐसे ही हुआ था। आगे चलकर उन्होंने लगभग 600 विवाह बिना दहेज के सम्पन्न कराये।

प्रभावती जी ने जयप्रकाश जी के साथ दुनिया के अनेक देशों का भ्रमण किया और वहाँ महिलाओं की उन्नत स्थिति देखी। इसका उनके मन पर बहुत प्रभाव पड़ा। वे कहती थीं कि नारी का जीवन प्रेम और सेवा की आधारशिला है। महिलाओं में ईश्वरीय शक्ति विद्यमान है। वे प्रेम से परिवार, समाज और राष्ट्र की अनीति को नीति में बदल सकती हैं। समाज में स्त्रियों की भागीदारी जितनी बढ़ेगी, उतना ही पुराना पाखंड टूटेगा।

प्रभावती जी को कैंसर का रोग था; पर उन्होंने अपना दुःख कभी दूसरों के सामने व्यक्त नहीं किया। वे सदा प्रसन्न और सक्रिय रहती थीं। जब तक सम्भव हुआ, उन्होंने अपने पति जयप्रकाश जी का ध्यान रखा; पर 15 अप्रैल, 1973 को प्राण पंछी उनकी देह को छोड़कर अनन्त आकाश में उड़ गया।

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