Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog जन्म दिवस अजातशत्रु पंडित प्रेमनाथ डोगरा “23 अक्तूबर/जन्म-दिवस”
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अजातशत्रु पंडित प्रेमनाथ डोगरा “23 अक्तूबर/जन्म-दिवस”

अजातशत्रु पंडित प्रेमनाथ डोगरा “23 अक्तूबर/जन्म-दिवस”

जम्मू-कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय के पक्षधर पंडित प्रेमनाथ डोगरा का जन्म 23 अक्तूबर, 1894 को ग्राम समेलपुर (जम्मू) में पं. अनंत राय के घर में हुआ था। जम्मू-कश्मीर के महाराजा रणवीर सिंह के समय में पं. अनंत राय “रणवीर गवर्नमेंट प्रेस” के और फिर लाहौर में “कश्मीर प्रापर्टी” के अधीक्षक रहे। उनका महत्व इसी से समझा जा सकता है कि लाहौर में वे राजा ध्यान सिंह की हवेली में रहते थे। इसलिए प्रेमनाथ जी की शिक्षा लाहौर में ही हुई।

प्रेमनाथ जी पढ़ाई और खेल में सदा आगे रहते थे। एफ.सी कॉलेज, लाहौर में हुई प्रतियोगिता में उन्होंने 100 गज, 400 गज, आधा मील और एक मील दौड़ की प्रतियोगिताएं जीतीं। इस पर पंजाब के तत्कालीन गर्वनर ने उन्हें विशेष रूप से सम्मानित किया। उन्हें एक जेब घड़ी पुरस्कार में मिली, जो उनके परिवार में आज भी सुरक्षित है। वे फुटबॉल के भी अच्छे खिलाड़ी थे।

शिक्षा के बाद शासन में अनेक उच्च पदों पर काम करते हुए वे 1931 में मुजफ्फराबाद के वजीरे वजारत (जिला मंत्री) बने। उस समय शेख अब्दुल्ला का ‘कश्मीर छोड़ो’ आंदोलन जोरों पर था। पंडित जी ने उस आंदोलन को बिना बल प्रयोग किये अपनी कूटनीति से शांत कर दिया; पर शासन बल प्रयोग चाहता था। अतः उन्हें नौकरी से अलग कर दिया गया।

इसके बाद पंडित जी जनसेवा में जुट गये। 1940 में वे पहली बार प्रजा सभा के सदस्य चुने गये। 1947 में जम्मू-कश्मीर का माहौल बहुत गरम था। महाराजा हरिसिंह को रियासत छोड़नी पड़ी। प्रधानमंत्री नेहरू की शह पर शेख अब्दुल्ला इस रियासत को अपने अधीन रखना चाहता था। उसने नये कश्मीर का नारा दिया और ‘अलग प्रधान, अलग विधान, अलग निशान’ की बात कही। कश्मीर घाटी में मुसलमानों की संख्या अधिक थी, अतः वहां भारतीय तिरंगे के स्थान पर शेख का लाल रंग और हल निशान वाले झंडे फहराने लगे।

यह सब बातें देशहित में नहीं थीं। अतः पंडित प्रेमनाथ डोगरा के नेतृत्व में प्रजा परिषद का गठन हुआ और ‘एक देश में एक प्रधान, एक विधान, एक निशान’ के नारे के साथ आंदोलन छेड़ दिया गया। आंदोलन के दौरान पंडित जी तीन बार जेल गये। उन्हें जेल में बहुत कष्ट दिये गये। उनकी सरकारी पेंशन भी बंद कर दी गयी; पर पंडित जी झुके नहीं।

आगे चलकर भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में कश्मीर आंदोलन शुरू हुआ। 23 जून, 1953 को श्रीनगर की जेल में डा. मुखर्जी की संदेहास्पद हत्या कर दी गयी। उस समय पंडित जी भी जेल में ही थे। डा. मुखर्जी के शव को दिल्ली होते हुए कोलकाता ले जाया गया। पंडित जी भी उसी वायुयान में थे; पर उन्हें दिल्ली ही उतार दिया गया। पंडित जी जवाहरलाल नेहरू से मिले और उन्हें पूरी स्थिति की जानकारी दी।

कुछ समय बाद प्रजा परिषद का जनसंघ में विलय हो गया और पंडित जी एक वर्ष तक जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। 1957 में वे जम्मू नगर से प्रदेश की विधानसभा के सदस्य चुने गये। 1972 तक उन्होंने हर चुनाव जीता। जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह के बारे में उनका कहना था कि विलय पत्र में इसका उल्लेख नहीं है, इसलिए उसका भारत में विलय निर्विवाद है।

पंडित जी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति बहुत प्रेम था। तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी सदा उनके घर पर ही ठहरते थे। पंडित प्रेमनाथ डोगरा का 21 मार्च, 1972 को कच्ची छावनी स्थित अपने घर पर देहांत हुआ।

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