सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-27
जिसने सन् 1533 ई में दो मुस्लिम सेनापतियों को मार गिराया था…
सन् 1533 ई. अंग्रेजों के साथ होने वाले युद्ध में अहोम सेना का नेतृत्व मुला गाभरू के पति फरासेंगमुंग बरगोहाईं कर रहे थे।
बरगोहाई एक उपाधि थी जो कि अहोम दरबार में वरिष्ठता में दूसरे मंत्री या दरबारी को दी जाती थी। वरिष्ठता में पहले दरबारी की उपाधि बूढ़ागोहाई थी।
यह व्यवस्था अहोम राजवंश के संस्थापक सुखपा ने लागू की थी।
बाद में राजा सुहंगमुंग ने इस व्यवस्था में तीन अन्य उपाधियाँ जोड़ दीं, जो वरिष्ठता के क्रम से बड़पात्रगोहाई, सदियाखोवा गोहाई और मरांगीखोवा गोहाई थीं। इन सब मंत्रियों के जिम्मे राज्य व्यवस्था के अलग-अलग कार्य थे।
तुरबक खान ने युद्ध में फरासेंगमुंग बरगोहाई की धोखे से हत्या कर दी। अपने सेनापति की मृत्य से अहोम सेना का मनोबल टूट गया और वह बिखरने लगी।
बरगोहाई की पत्नी मुला गाभरू उस समय शिविर में थी। पति की मृत्यु का समाचार मिलने पर वह घबराई नहीं, अपितु बिखरती हुई सेना को संभालने का प्रयास करने लगी। मुला गाभरू लड़ना जानती थी और शस्त्रों के संचालन में निपुण थी। वह घोड़े पर सवार हुई और अपने सैनिकों में जोश जगाती हुई रणभूमि की ओर चल दी। रणभूमि में पहुँचकर मानो मुला गाभरू में रणचंडी प्रवेश कर गईं।