हिन्दू चेतना के प्रचार पुरुष आनंद शंकर पंड्या “26 मई/जन्म-दिवस”
विश्व हिन्दू परिषद के वरिष्ठ कार्यकर्ता आनंद शंकर पंड्या का जन्म 26 मई, 1922 को म.प्र. के हटा गांव में श्री रेवाशंकर जी तथा श्रीमती रुक्मिणी देवी के घर में हुआ था। यद्यपि यह परिवार मूलतः गुजरात का था। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने गांव में ही ली। इसके बाद पूरा परिवार बनारसी साडि़यों के कारोबार के लिए काशी आ गया। आनंद जी ने काशी हिन्दू वि.वि. से बी.ए किया। तत्कालीन उपकुलपति डा. राधाकृष्णन हर रविवार को गीता पर व्याख्यान देते थे। आनंद जी को धर्म के संस्कार परिवार से तो मिले ही थे; पर गीता के इन व्याख्यानों से उनमें हिन्दू धर्म के प्रति आस्था और दृढ़ हो गयी।
आनंद जी की माता स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय रहती थीं। उन्होंने अपने बच्चों को तीन शिक्षाएं दीं। पहली किसी के साथ अन्याय न करो और करने दो। दूसरी समय नष्ट मत करो तथा तीसरी सदा सावधान रहो। आनंद जी ने जीवन भर इनका पालन किया। काशी के बाद उनका परिवार मुंबई आकर हीरे-जवाहरात का काम करने लगा। इसमें उन्हें भरपूर धन और यश प्राप्त हुआ। कुछ ही समय में वे मुंबई के बड़े कारोबारी बन गये।
धर्मप्रेमी होने के नाते आनंद जी हिन्दू समाज की वर्तमान स्थिति पर बहुत चिंतित रहते थे। एक बार वे मुंबई में विश्व हिन्दू परिषद की बैठक में गये। वहां वि.हि.प के कोषाध्यक्ष सदाजीवत लाल जी के भाषण से प्रभावित होकर वे भी वि.हि.प. से जुड़ गये। उन्होंने एक अच्छी राशि भी संगठन को दी। कुछ समय बाद उनका संपर्क श्री अशोक सिंहल से हुआ। इसके बाद तो वे पूरी तरह अशोक जी और वि.हि.प. के प्रति समर्पित हो गये। कुछ समय बाद उन्हें संगठन में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गयी। अपने कारोबार के सिलसिले में वे विदेश जाते ही थे। उस दौरान वे वि.हि.परिषद का काम भी करने लगे। इससे कई नये देशों में परिषद का नाम और काम पहुंच गया।
आनंद जी ने अपनी सारगर्भित लेखनी से हिन्दुओं की भरपूर सेवा की। वे अध्ययन के शौकीन थे। उनके पास देश-विदेश की पुस्तकों तथा पत्रिकाओं का बड़ा संग्रह था। उसके आधार पर वे लिखते थे तथा उन्हें पुस्तक एवं पत्रक के रूप में बांटते थे। यह काम उन्होंने 50 साल तक किया। पत्रक में उनका नाम और पता लिखा रहता था। वे यह भी उल्लेख करते थे कि इसका हर शब्द सत्य है। इसे बांटने के इच्छुक लोगों को ये पत्रक वे निःशुल्क भेजते भी थे। इस प्रकार उन्होंने करोड़ों पत्रक निजी व्यय से छापे और बांटे। जो पत्रिकाएं ना-नुकुर करती थीं, वहां वे विज्ञापन के रूप में इन्हें छपवाते थे।
इसके साथ ही मुंबई के अन्य सभी सामाजिक कामों में भी वे सक्रिय रहते थे। वर्ष 2000 में वंदे मातरम् की 125 जयंती मनायी गयी। संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री मोरोपंत पिंगले की इच्छा थी कि इसे भव्य रूप से मनाया जाए। इसके लिए आनंद जी की अध्यक्षता में एक समिति बनायी गयी। समारोह के बाद समिति ने ‘वंदे मातरम् फांउडेशन’ का रूप ले लिया। उसी के बैनर पर 2008 में आनंद जी की 85वीं वर्षगांठ मनायी गयी। उसमें देश के अनेक बड़े संत, समाजसेवी, राजनेता तथा सरसंघचालक श्री सुदर्शन जी भी उपस्थित थे। चार अक्तूबर, 2007 को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के अभिनंदन का भी अति भव्य कार्यक्रम इसी संस्था ने किया।
आनंद जी ने शिक्षा में नवोन्मेष तथा राष्ट्रपति डा. कलाम के ‘विजन 2020’ को मूर्त रूप देने के लिए ‘समर्थ न्यास’ का गठन किया। यह केन्द्र तथा राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करता है। इसमें देश के कई विद्वान एवं शिक्षाविद् जुड़े हैं। ऐसे महामनीषी श्री आनंद शंकर पंड्या का 10 नवंबर, 2021 में मुंबई में ही देहांत हुआ। अपनी लेखनी के माध्यम से की गयी उनकी सेवाओं के लिए उन्हें सदा याद किया जाता रहेगा।
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