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अमर चित्रकथा के शिल्पी : अनंत पै “24 फरवरी/पुण्यतिथि”

अमर चित्रकथा के शिल्पी : अनंत पै “24 फरवरी/पुण्यतिथि”

कहानी पढ़ना किसे अच्छा नहीं लगता; शायद ही कोई बच्चा हो, जिसने अपनी दादी-नानी या मां से कहानी न सुनी हो। बड़े होने पर अपने विद्यालय की पुस्तकों के साथ ही पत्र-पत्रिकाओं में छपने वाली कहानी और कविताएं भी बच्चे बड़ी रुचि से पढ़ते हैं। इसके अतिरिक्त उन्हें चित्र देखने में भी बहुत मजा आता है। इसमें से ही साहित्य की चित्रकथा विधा का जन्म हुआ।

भारतीय इतिहास तथा पौराणिक पात्रों के आधार पर चित्रकथा बनाने वाले अनंत पै का जन्म 17 सितम्बर, 1929 को करकाला (कर्नाटक) में श्री वैंकटार्य एवं सुशीला पै के घर में हुआ था। दो वर्ष के होते-होते उनके माता-पिता का देहांत हो गया। अनंत 12 वर्ष की अवस्था में मुंबई आ गये और माहिम स्थित ओरियेंट स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से भौतिकी, रसायन और रसायन तकनीक में एक साथ दो उपाधियां प्राप्त की।

चित्र और छपाई कला में रुचि होने के कारण अनंत पै ने 1954 में ‘मानव’ नामक बाल पत्रिका निकाली; पर उसमें सफल न होने पर वे ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में काम करने लगे। उन दिनों उसमें बेताल और फैंटम जैसे विदेशी पात्रों पर आधारित ‘इंद्रजाल कामिक्स’ नामक चित्रकथा छपती थी। 1967 में अनंत पै ने दूरदर्शन के एक प्रश्नोत्तर कार्यक्रम में देखा कि बच्चे विदेशी नायकों के बारे में तो जानते हैं; पर श्रीराम और श्रीकृष्ण के बारे में नहीं। इससे उनके मन को चोट लगी और उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया से त्यागपत्र दे दिया।

अब वे स्वतन्त्र रूप से इस दिशा में काम करना चाहते थे; पर उनके पास इतना धन नहीं था। अनेक प्रकाशकों ने उनके विचारों को ठुकरा दिया; पर ‘इंडिया बुक हाउस’ के श्री मीरचंदानी के सहयोग से ‘अमर चित्रकथा’ प्रकाशित होने लगी। बच्चों के साथ ही उनके अभिभावक और अध्यापकों ने भी इनका भरपूर स्वागत किया। भारत के महापुरुष, वीर महिलाएं, पौराणिक पात्र, प्रख्यात वैज्ञानिक, स्वाधीनता सेनानी आदि विषयों पर उन्होंने लगभग 450 पुस्तकें बनाईं। इनकी देश की 20 भाषाओं में दस करोड़ प्रतियां बिकीं।

अब वे बच्चों में ‘अनंत चाचा’ के नाम से प्रसिद्ध हो गये। 1969 में उन्होंने ‘रंग रेखा फीचर्स’ तथा 1980 में अंग्रेजी बालपत्रिका ‘टिंकल’ प्रारम्भ की। इसके पहले अंक की 40 हजार प्रतियां बिकीं। इसके कार्टून पात्र कपीश, रामू और शामू, सुपंडी, शिकारी शंभू और तंत्री दि मंत्री आदि बच्चों में खूब लोकप्रिय हुए। इसके ‘अनु क्लब’ द्वारा उन्होंने बच्चों में विज्ञान को लोकप्रिय बनाया। उनके पास हर मास चार से पांच हजार पाठकों के पत्र आते थे।

अनंत चाचा की सफलता का कारण उनकी विशिष्ट शैली थी। वे काम करते समय स्वयं बच्चों की मानसिकता में डूब जाते थे। उन्होंने अनेक साथी बनाये, जिनमें श्री राम वेरकर प्रमुख हैं। उन्होंने हिन्दी तथा अंग्रेजी में बच्चों के लिए सफलता के रहस्य, व्यक्तित्व विकास, स्मृति शास्त्र आदि पुस्तकें तथा वेदों की जानकारी देने के लिए ‘एकम् सत्’ नामक वीडियो फिल्म भी बनाई। कहानी सुनाते हुए उनके कई आडियो टेप भी लोकप्रिय हुए।

श्री अनंत पै सदा नये विचारों पर काम करते रहते थे। वृद्ध होने पर भी वे भारत के विभिन्न तीर्थों तथा भारतीय इतिहास की 40 महत्वपूर्ण घटनाओं पर आधारित एक बड़े प्रकल्प पर काम कर रहे थे; पर सीढ़ियों से गिर जाने के कारण उनकी कूल्हे ही हड्डी टूट गयी। अतः उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। वहीं 24 फरवरी, 2011 को हुए भीषण हृदयाघात से बच्चों के प्रिय अनंत चाचा सचमुच अनंत की यात्रा पर चले गये। दूरदर्शन और अंतरजाल के वर्तमान दौर में भी उनकी पुस्तकों की लगभग तीन लाख प्रतियां प्रतिवर्ष बिकती हैं।

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