आखिर किसी ने तो ली घूमंतु समाज की सुध !
-‘अपनी बस्ती अपना हवन’ के बाद तीर्थ यात्रा कार्यक्रम से दी आत्मिक खुशी -महेन्द्र भौमियां
खुले आसमान के तले जमीन को बिछौना बनाकर सोने वाले मेहनतकश घूमंतु समाज के जीवन में पिछले दिनों दो ऐसे अवसर आए जो उन्हें ताउम्र याद रहेंगे। घटनाक्रम सामान्य है, लेकिन इसके परिणाम दूरगामी होंगे। कड़ी धूप में जमीन खोदकर पाइप डालना हो या केबल बिछाना, पुराने मकानों के मलबे को उठाकर दूसरी जगह डालना हो या भारी भरकम सामान को इधर-उधर करना। राजधानी में ये सब काम स्थानीय मजदूर नहीं, घूमंतु समाज के लोग करते हैं। इनमें गाडिय़ा लुहार, भोपा, नाथ, कालबेलिया आदि शामिल हैं। इनका मूल काम कभी कुछ और था, मगर वक्त की मार ने इन्हें ये सब करने पर मजबूर कर दिया। पहले रहने का ठिकाना भी तय नहीं था। देशभर में घूमते रहते थे, इसलिए नाम पड़ गया घूमंतु समाज। अब इन्होंने भी बदलाव को अपनी नियति मान लिया है। राजधानी के चारों कोनों में सडक़ किनारे इनकी बस्तियां हैं, जिनमें सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है। स्थानीय लोगों को इनकी नजदीकी फूटी आंख नहीं सुहाती। इसलिए वे इनकी बस्तियों में लाइट, पानी, शौचालय तक नहीं बनने देते। वोट बैंक के लालच में ज्यादातर जनप्रतिनिधि स्थानीय लोगों का ही साथ देते आए हैं।
लेकिन उपेक्षा भावों के बीच पिछले छह माह से इन बस्तियों में कुछ सुखद हलचल हुई है। घूमंतु जाति उत्थान न्यास ने समाज के संभ्रांत लोगों को इनकी बस्तियों में ले जाना शुरू किया, ताकि उन्हें पता चल सके कि अपने ही समाज के लोग किन परेशानियों में बदहाल जीवन जी रहे हंै। विद्याधर नगर जैसे पॉश इलाके में जहां एक पल के लिए लाइट नहीं जाती, चमचमाती सडक़ें हैं। पीने के पानी की कोई कमी नहीं है, लेकिन उसी विद्याधर नगर में कई बस्तियां ऐसी हैं, जहां ना लाइट है और ना पीने के पानी के लिए नल। शौच के लिए पक्के शौचालय इनके लिए आज भी दिवास्वप्न बना है। सरकार यहां कोई सुविधा नहीं देती है। वैशाली नगर, न्यू सांगानेर रोड, मानसरोवर, गलता गेट, हरमाड़ा, बढ़ारणा में बसी इनकी बस्तियों के भी कमोबेश यही हालात हैं।
अधिकारियों का तर्क है कि ये अवैध रूप से बसे हैं, इन्हें सुविधा दे दी तो ये स्थाई रूप से यहीं बस जाएंगे, लेकिन दूसरी ओर इसी राजधानी में कई ऐसी बस्तियां जहां बिजली, पानी सब फ्री है। कारण उनमें समुदाय विशेष के लोग रहते हैं। उनके लिए बाकायदा एक लॉबी काम करती है। राजनीतिक संरक्षण भी है, लेकिन घूमंतु समाज की आवाज सुनने वाला कोई नहीं है।ऐसे लोगों की आवाज को स्वर देने के लिए घूमंतु जाति उत्थान न्यास ने पिछले दिनों एक के बाद एक कार्यक्रम हाथ में लिए। ‘अपनी बस्ती अपना हवन’ के अंतर्गत इनकी बस्तियों में हवन करवाया। अखिल विश्व गायत्री परिवार के निष्ठावान कार्यकर्ताओं ने बिना किसी दक्षिणा के मोह में यज्ञ संपन्न करवाया।
घूमंतु उत्थान न्यास के जयपुर महानगर संयोजक राकेश शर्मा बताते हैं कि घूमंतु समाज देश की मार्शल कौम है। इन्होंने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढक़र योगदान दिया था। इनकी शक्ति को क्षीण करने के लिए अंग्रेजों ने इन पर आदतन अपराधी का ठप्पा लगा दिया। इसके बावजूद इस समाज ने देश की आजादी में भाग लिया, लेकिन इनके योगदान को कभी सराहा नहीं गया। सभ्य कहे जाने वाले समाज ने इन्हेंं अछूत मान लिया और दोनों में खाई बढ़ती गई। आज इस खाई को पाटने के लिए राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत संगठन ने कई कार्यक्रम हाथ में लिए हैं। इनकी बस्तियों में आना-जाना शुरू किया है। लोग इनके बीच जाकर अपने बच्चों के जन्मदिन मना रहे हैं। हॉस्पिटलों की ओर से निशुल्क चिकित्सा शिविर लगाए जा रहे हैं। यहां छोटे मंदिर हैं। उनमें पुजारी नियुक्त किए गए हैं। हर माह पुजारी को मानदेय और पूजन सामग्री दी जा रही है। इसी कड़ी में इन्हें पिछले दिनों हरिद्वार और ऋषिकेश की धार्मिक यात्रा करवाई गई। सभी व्यवस्थाएं भामाशाहों के सहयोग से की गईं। अब धार्मिक यात्रा हर माह करवाई जाएगी। पहली यात्रा का अनुभव बेहद सुखद रहा। जिस प्रकार हवन पहली बार किया उसी प्रकार तीर्थ यात्रा भी पहली बार की। यात्रा कर लौटीं कमला बाई कहती हैं- किसी ने हमारी सुध नहीं ली। लोग चुनाव के समय वोट मांगने आते थे और चले जाते थे। अब संघ कार्यकर्ता हमें हरिद्वार लेकर गए, गंगा माई के दर्शन कराए। पहली बार गंगा में नहाए। हमारा जीवन धन्य हो गया।
धापा देवी, ग्यारसी, मोहिनी… इन सबके भी कमोबेश यही अनुभव थे। घूमंतु समाज के पुरुषों को भी काम की अधिकता के कारण धार्मिक यात्रा पर जाने का समय नहीं मिला। परिवार के साथ पहली बार यात्रा की तो चेहरे पर खुशी साफ पढ़ी जा रही थी। इन दो कार्यक्रमों से इन लोगों को अब लगने लगा है कि मेट्रो सिटी की भागती-दौड़ती जिंदगी में कई लोग हैं जो उनकी तकलीफों से वास्ता रखते हैं।
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