सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 13
प्रजा मंडल के कुछ लोगों ने स्वयं को नाव से जुड़ी रस्सियों के साथ बाँध लिया और अंग्रेजों को नाव ले जाने से रोकने लगे।
बौखला कर अंग्रेजों ने इन निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चला दीं। कई लोग वहीं पर शहीद हो गए। इस गोलीकांड में बालक बाजी राउत ने भी अपने देश और अपने लोगों के लिए अपना बलिदान दिया।
उनके अतिरिक्त और शहीदों के नाम थे हुरूषी प्रधान, लक्ष्मण मलिक, रघु नायक, गुरी नायक, नाटा मलिक और फागू साहू।
उड़िया कवि सच्चिदानंद राउतराय ने अपनी प्रसिद्ध कविता में बाजी राउत को श्रद्धांजलि दी है, कुछ पंक्तियों का अनुवाद इस प्रकार है:–
मित्र मेरे, ये चिता की अग्नि नहीं,
(देश में) निराशा के तिमिर में;
ये हमारे स्वतन्त्रता की किरण है।
ये हमारी स्वातन्त्र्य अग्नि है।।
वीर बालक बाजी राउत और देश के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले प्रजामंडल के सभी वीरों को हमारा कोटि कोटि नमन्।
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