समन्वय के साधक बालकृष्ण नाईक “24 मार्च/जन्म-दिवस”
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक बालकृष्ण उत्तमराव नाईक का जन्म महाराष्ट्र के पैठण (संभाजीनगर) में हुआ था। वे बचपन से ही मेधावी छात्र थे। गुजरात से स्नातक इंजीनियर तथा फिर अमरीका के स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय से उन्होंने डैडम् की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उनके लिए ऊंचे वेतन की निजी और सरकारी नौकरियों के दरवाजे खुले थे। देश और विदेश में उनके लिए अपार संभावनाएं थीं; पर वे बचपन से ही संघ के प्रति समर्पित हो चुके थे। अतः 1966 में संघ का तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण पूरा कर वे प्रचारक बन गये।
उनके प्रचारक जीवन की शुरुआत महाराष्ट्र में परभणी से हुई। एक वर्ष वहां रहने के बाद उन्हें कांग्रेस और वामपंथियों के गढ़ बंगाल में भेजा गया। तब संघ के पास साधनों का अभाव था। ऐसे में काम करना बहुत कठिन था; पर बालकृष्ण जी शुरू से संतोषी एवं आध्यात्मिक स्वभाव के थे। अतः अपनी जरूरतें कम करते हुए उन्होंने वहां काम बढ़ाया। 1967 से 69 तक वे वर्धमान और फिर 1974 तक हावड़ा में जिला प्रचारक रहे।
इसके बाद उनकी जीवन यात्रा विश्व हिन्दू परिषद के साथ आगे बढ़ी। विहिप का काम और नाम उन दिनों बहुत कम था। 1974 में उन्हें मेदिनीपुर विभाग में सेवा प्रमुख बनाया गया। 1976 में वे बंगाल के संगठन मंत्री बने। 1983 में विहिप ने एकात्मता यज्ञ यात्राओं का आयोजन किया। उन दिनों बंगाल में वामपंथी नेता ज्योति बसु मुख्यमंत्री थे। वे धर्म कर्म में विश्वास नहीं करते थे। अतः उनकी शह पर वामपंथियों ने इस यात्रा में बहुत विघ्न डाले।
जिस दिन कोलकाता में बड़ी यात्रा निकलनी थी, उस दिन माहौल बहुत तनावपूर्ण था। कार्यकर्ता भी एकमत नहीं थे। कुछ चाहते थे कि टकराव न लेते हुए छोटे मार्ग से शांतिपूर्वक यात्रा निकाल लें; पर कुछ का मत था कि पूरे जोर शोर से मुख्यमार्गों से यात्रा निकले। बालकृष्ण जी दूसरे पक्ष में थे। अंततः उनकी बात मानी गयी। जैसे ही यात्रा मुख्य मार्ग पर आयी, जनता प्रतिबंध तोड़कर उमड़ पड़ी। इससे बंगाल में विहिप के काम को बहुत बल मिला।
1990 से 95 तक मुंबई में रहते हुए वे पश्चिमांचल संगठन मंत्री रहे। 1995 से उनका केन्द्र दिल्ली हो गया। पहले वे विश्व विभाग में तथा 2002 से विहिप उपाध्यक्ष एवं समन्वय मंच में कार्यरत रहे। विश्व विभाग के काम के लिए उन्होंने कई देशों का प्रवास कर वहां संगठन की नींव रखी। इसके बाद वे विहिप के संयुक्त महामंत्री और फिर उपाध्यक्ष रहे।
विहिप की स्थापना का उद्देश्य भारत में जन्मे, पले और विकसित हुए सभी मत, पंथ, संप्रदाय तथा उपासना पद्धतियों में समन्वय स्थापित कर उन्हें एक मंच पर लाकर संगठित करना है। इनकी संख्या हजारों में है; पर जैन, बौद्ध और सिख बड़े और प्रभावी समुदाय हैं। इन्हें जोड़ने के लिए बालकृष्ण जी ने अथक प्रयास किया। उनके धर्मगुरुओं को वे विहिप के कार्यक्रम में बुलाते थे। वहां उनके भाषण भी होते थे। विहिप में हिन्दू नाम के कारण ये धर्मगुरु कई बार हिचकिचाते थे; पर बालकृष्ण जी ने अपनी विनम्रता और विद्वत्ता से उन्हें संगठन से जोड़ा। अतः उनके आश्रमों में भी विहिप की बैठकें और शिविर होने लगे।
इस दौरान उनका संबंध विपश्यना का भारत में पुनप्र्रसार करने वाले सत्यानारायण गोयनका से हुआ। वे पहले 10 दिन और फिर 40 दिन वाले शिविरों में जाने लगे। प्रायः वे प्रतिवर्ष उनके शिविर में जाते थे। वहां लगातार मौन रहकर आत्मसाधना करनी होती थी। यों तो वे शुरू से ही शांत स्वभाव के थे; पर इसके बाद अध्यात्म साधना में उनका काफी समय लगने लगा।
2020 में भारत में कोरोना महामारी फैली थी। उसी दौरान वे गौतम बुद्ध की निर्वाण स्थली कुशीनगर गये। वहीं उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। 18 नवम्बर, 2020 को कुशीनगर से गोरखपुर जाते हुए एंबुलेंस में ही उनका देहांत हो गया