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विकसित भारत 2047 की संकल्पना-24

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जनसंख्या लाभांशः- उद्यमिता -7

उद्यमिता एक मानसिकता एवं विमर्श का विषय भी है। ब्रिटिश राज के समय से मैकाले की शिक्षा पद्घति के चलते भारत को स्वरोजगार, कृषि में मूल्य संवर्धन और उद्यमिता के स्थान पर नौकरी ही उनके रोजगार का प्रमुख साधन है- ऐसा पढ़ा दिया गया। इसलिए दसवीं कक्षा के बाद आईटीआई में पढ़ता हुआ युवक हो अथवा किसी उच्च आईआईटी से निकला हुआ स्नातक, वे सब केवल नोकरी पाने वाले (Job Seekers) ही बने हुए हैं।

भारत को अगर पूर्ण रोजगारयुक्त और एक समृद्ध देश के नाते से उभरना है तो अपने इन युवाओं की मानसिकता, उद्यमिता पर लानी ही होगी। “उद्यमिता, स्वदेशी, विकेंद्रीकरण और सहकारिता के चतुर्पदी मार्ग” पर अपने युवाओं को डालना होगा। यह अपरिहार्य भी है। जोब सीकिंग की मानसिकता बदलने के लिए युवाओं में आत्मविश्वास पैदा करने के लिए व्यापक प्रयत्न करने होंगे।

सुखद है विषय है कि भारत में उद्यमिता, युवाओं में तेजी से बढ़ रही है। एक लाख से अधिक स्टार्टअप के साथ भारत विश्व का तीसरा बड़ा इकोसिस्टम बन गया है। भारत में प्रतिदिन 500 से अधिक नई कंपनियों का पंजीकरण हो रहा है। “यदि अपने युवाओं में इस उद्यमिता की भावना को नीतिगत सहयोग देकर बढ़ावा दिया जाए तो निश्चय ही भारत की जनसंख्या बहुत बड़े लाभांश (Gains) में बदल सकती है।”

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