विकसित भारत 2047 की संकल्पना-34
आर्थिक प्रगति हेतु कुछ नवीन विचार
- अनेक अर्थशास्त्रियों का मत है कि हमें अपनी घरेलू बाजार को अंतर्राष्ट्रीय काॅर्पोरेशन्स के आगे खुला नहीं छोड़ देना चाहिए, बल्कि उसका उपयोग करना चाहिए।
- हमारी कंज्यूमर पापुलेशन 18 प्रतिशत के साथ विश्व में सबसे बड़ी है, और हम परचेसिंग पावर पेरिट्टी Purchasing Power Parity (PPP) में विश्व में दूसरे स्थान पर हैं और शीघ्र ही क्रमांक एक पर हो जाएंगे।
- इसके अतिरिक्त देश में पूंजी की कोई कमी नहीं है। यहां तक कि हमारे मंदिरों में बहुत बड़ी मात्रा में आज भी धन सम्पदा उपलब्ध है। आवश्यकता है बस उसका देश के व्यापक हित में सदुपयोग करने की। इस सनातन धर्म की पूंजी पर से सरकारी नियंत्रण समाप्त होना चाहिए। जैसा कि अन्य धर्म के आस्था केंद्रों की पूंजी पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है जहां विदेशों से भी अपार धन की आवक होती है।
- यदि हम अपने मंदिरों की पूंजी का स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास एवं उद्यमिता के क्षेत्र में निवेश करने के लिए समाज में एक वातावरण बनाएं, तो हम बड़ी मात्रा में अपने देश की ही पूंजी का उपयोग कर सकते हैं। देश के बड़े 12 मंदिरों के अंदर ही इतनी पूंजी है, जितनी कि श्रीलंका की कुल जीडीपी है या पाकिस्तान की एक तिहाई जीडीपी।