निष्कर्ष-5
• भारत एक बहुलतावादी (पंथनिरपेक्ष) राष्ट्रीय समाज है; जो अनादिकाल से था और आज भी हैं। प्रस्तुत की गई समस्त टिप्पणियाँ किसी संभावित दलित-मुस्लिम, बौद्ध-मुस्लिम, सिख-मुस्लिम या किसी भी अन्य गठजोड़ की सच्चाई और उसकी व्यवहारिकता की वास्तविकता को उजागर करने के लिए पर्याप्त हैं।
• किसी भी भारतीय दर्शन, समुदाय या धर्म का किसी भी अखिल-इस्लामिक या अखिल- यीशूवादी विचारधाराओं के साथ ‘कृत्रिम गठजोड़’ हमारे बहुलतावादी समाज के उस भाग को पूरी तरह से नष्ट कर सकता है। जे.एन. मंडल का जिहादियों के साथ गठजोड़ इसी का एक सटीक उदाहरण है।
• हमारे जैसे बहुलतावादी सनातन समाज में ऐसा तो हो नहीं सकता कि मतभेद न हों। परन्तु, उन समाज विभाजक, अराजक और विध्वंसक विचारधाराओं को पहचानना व समझना समय की माँग है; विशेष कर तब, जब हमारी बहुलता को चुनौती दी जा रही है; जो इनका उपयोग देश में अव्यवस्था, अराजकता फैलाने के साथ-साथ देश को भीतर से तोड़ने का प्रयास करतीं हैं।
• आवश्यकता इस बात की भी है, कि एक ‘न्यूनतम साझा कार्यक्रम’ के अंतर्गत समन्वित ढंग से हमें घेर रहे इस संकट का प्रतिरोध व सामना करने के लिए एक प्रतिकारक्षम सुदृढ़ रक्षण प्रणाली विकसित की जाए।
• एकेश्वरवाद की इस ‘विध्वंसक चौकड़ी’ ने हमारे बहुलतावादी समाज की श्रेष्ठ परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ ही, समाज के अस्तित्व तक के लिए संकट खड़ा कर दिया है। इस अवश्यंभावी आपदा का डटकर मुकाबला करना ही अपने अस्तित्व के बचे रहने का एकमात्र मार्ग है।
• इसके लिए हमें भारत में नानाविध जहर घोलने वाले इस नुस्खों (झूठे मनगढ़ंत विमर्श स्थापित करना, कलुषित मानसिकता से बने स्वार्थी गठजोड़ों) से विवेकपूर्वक कठोरता से निपटना ही होगा।