जिहादी रक्तबीज, हर बूँद से नया रूप-7
एंग्लो-मुस्लिम गठजोड़ (Anglo-Muslim Alliance)
सन् 1889 में ब्रिटिश संसद में चार्ल्स ब्रेडलॉफ ने एक बिल प्रस्तुत किया। विधेयक का उद्देश्य भारत में लोकतांत्रिक संस्थानों की स्थापना था।
थियोडोर बेक, प्रधानाचार्य अलीगढ मुस्लिम काॅलेज ने इस मौके का लाभ अपने कलुषित एजेंडा के लिए उठाया। उसने इस बिल का विरोध करते हुए भारतीय मुसलमानों की ओर से ज्ञापन प्रस्तुत किया। उसकी दलील थी कि लोकतांत्रिक सिद्धांत लागू करना भारत के लिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि यहाँ कोई एक देश ही नहीं है।
अलीगढ़ मूवमेंट के संस्थापक सर सैयद अहमद खान और थियोडोर बेक के बीच जो सहमति थी, वह दोनों के लिए लाभ का सौदा था। सैयद अहमद खान अंग्रेजों को लाभ पहुँचाने के लिए मुसलमानों को कांग्रेस के स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित न होने की राह पर ले जा रहे थे।
इस इंतजाम का एक और उदाहरण सन् 1905 में बंगाल के विभाजन के घटनाक्रम से अधिक बेहतर समझा जा सकता है। ब्रिटिश राज के विरुद्ध बंगाल क्रांतिकारी गतिवधियों का केंद्र बन गया था; इसलिए, अंग्रेजों के लिए सबसे उपयुक्त रास्ता धार्मिक आधार पर बंगाल का विभाजन ही था। ऐसा करने के लिए उन्हें जिहादियों की भी मदद चाहिए थी।
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