जिहादी रक्तबीज, हर बूँद से नया रूप-11
एंग्लो-मुस्लिम गठजोड़
(Anglo-Muslim Alliance)
वर्तमान समय के भारत में जिहाद जारी रखने का प्रोत्साहन ‘दिनिया’ की अवधारणा तक जाता है। इसके सूत्रधार चौधरी रहमत अली (पाकिस्तान नाम के प्रणेता) थे।
सन् 1933 में चौ.रहमत अली ने कैंब्रिज में भारतीय मुस्लिम छात्रों के एक समूह का नेतृत्व किया। वहाँ उन्होंने ‘Now or Never; Are we to live or perish Forever (अभी नहीं तो कभी नहीं; क्या हम जियेंगे या मरेंगे), शीर्षक वाले पर्चे (जिसे पाकिस्तान डिक्लरेशेन भी कहा गया है।) में सुझाव दिया, कि उत्तर-पश्चिम के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र को शेष भारत से अलग कर दिया जाए।
उनके इस पर्चे ने इस विचार को हवा दी, कि भारत एक ऐसा देश है, जिसका निर्माण अंग्रेजों ने किया, यह कभी भी एक राष्ट्र नहीं था। (आज के नक्सल इसी सोच पर तो डटे हैं।)
उनके पर्चे ने इस दावे की और भी अधिक पुष्टि की, कि सभ्यता के तौर पर मुस्लिम एक अलग देश है।
यह दुष्प्रचार कि भारत या इंडिया कई देशों का समूह है; अर्बन नक्सल के लिए भी दिशा निर्देशक तत्व का काम करता है। यह उस न्यूनतम साझा कार्यक्रम की भी पोल खोलता है; जिस पर समकालीन भारत में नक्सली और जिहादी मिल कर काम करने के लिए सहमत हुए हैं।
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