पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई)-3
एजेंडा और सहयोगी
वर्ष 2006 में केरल में नेशनल डवलपमेंट फ्रंट (एनडीएफ) के उत्तराधिकारी के रूप में पीएफआई का जन्म हुआ। बाद में कर्नाटक के फोरम फॉर डिगनिटी (केएफडी) और तमिलनाडु के मनीता नीति पसरई (एमएनपी) के साथ इसका विलय हो गया।
अन्य राज्यों में जिन संगठनों का पीएफआई के साथ विलय हुआ उनमें–
गोवा सिटिजन्स फोरम, राजस्थान की कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशनल सोसाइटी, पश्चिम बंगाल की नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति, मणिपुर की लिलोंग सोशल फोरम और आंध्र प्रदेश की एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस हैं।
इसके कई अनुषांगिक संगठन है। जैसे—
रिहैब इंडिया फाउंडेशन, इंडियन फर्टेर्निटी फोरम, कनफेंडरेशन ऑफ मुस्लिम इंस्टीट्यूशन्स इन इंडिया, मुस्लिम रिलीफ नेटवर्क (एमआरएन) और सत्य सारानी-मरकजल-उल-हिदाया।
पीएफआई आधिकारिक तौर पर कहता है, कि वह मुस्लिम आरक्षण, मुसलमानों के लिए शरिया अदालतों की स्थापना, दलित, सिख एवं वनवासी हितों की रक्षा के लिए काम करता है। आज यह सफलतापूर्वक तमाम राज्यों में जड़ें जमा चुका है।
पीएफआई नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स आर्गेनाइजेशन (एनसीएचआरओ) और कई अन्य मानवाधिकार संगठनों के सहयोग से भी काम करता है। परन्तु उसकी ये गतिविधियाँ उसके वास्तविक उद्देश्य को छिपाने वाला चोला भर हैं। इसका मुख्य उद्देश्य भारत को अस्थिर करना है।
अपने पुराने अवतारों की तरह पीएफआई भी बेहद अच्छे तरीके से वित्त पोषित है और यह समाचार पत्रों, प्रकाशनों और शैक्षिक संस्थाओं को खड़ा करने के काम में पूरी तरह से जुटा हुआ है।
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