वी. टी. राजशेखर शेट्टी और उसकी भारत विरोधी योजना-2
शेट्टी ने कई विचारधाराओं का दामन थामा; बदलते बहाव के साथ स्वयं को परिवर्तित किया। स्वयं पहले एक वामपंथी, फिर एक इस्लामवादी रहे शेट्टी ने भारत में दोबारा इस्लामिक राज स्थापित करने के लिए “रक्तहीन तख्ता पलट” का फार्मूला पेश किया।
अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की कुटिल नीति के तहत पादरी काल्डवैल (Caldwell) ने छल-कपट युक्त ‘आर्य-द्रविड़ वंश सिद्धांत’ दिया। जो पूर्णतया असत्य सिद्ध होकर विश्व भर में अमान्य/ खारिज किया जा चुका- उसके सर्वाधिक मुखर समर्थक शेट्टी ही थे।
वह एक ओर आर्यों को आक्रांता बता कर अपशब्द कहते थे; तो वहीं दूसरी ओर वह हिटलर के अंध-समर्थक थे। वह नाजियों द्वारा यहूदियों के नरसंहार को नकारते थे।
उन्होंने कई पत्रक प्रकाशित किए। इनमें उन्होंने दोष लगाया कि- ‘यहूदी नरसंहार दरअसल यहूदियों का ही एक षड्यंत्र है। उसने वैचारिक रूप से ईरान और महमूद अहमदीनेजाद का समर्थन करते हुए यहूदी नरसंहार को एक मिथक करार दिया।’
विभिन्न सार्वजनिक सभाओं में शेट्टी को यह आह्वान करते हुए सुना गया कि – ‘मुसलमान हथियार उठाएँ और भारत में इस्लामिक राज स्थापित करने के लिये ब्राह्मणों का संहार कर दें।’
वर्ष 1983 में बेंगलूर (अब बेंगलुरु) दलित साहित्य अकादमी से प्रकाशित पुस्तक ‘India’s Muslim Problem: Agony of the India’s Single Largest Community (भारत की मुस्लिम समस्या: भारत के सबसे बड़े समुदाय का कष्ट)’, में शेट्टी ने हिंदुओं को रास्ते से हटाने और भारत में पुन: इस्लामिक राज स्थापित करने के लिये ‘दलित-मुस्लिम गठजोड़’ की पैरोकारी की।