गोभक्त अरुण माहौर “25 फरवरी/बलिदान-दिवस”
भारत में सदा से ही गाय को पूज्य माना जाता है। अनेक लोग गोरक्षा के लिए हर संकट उठाने का तैयार रहते हैं। ऐसे ही एक गोभक्त थे श्री अरुण माहौर, जिन्हें हत्यारों ने गोली मारकर सदा की नींद सुला दिया।
उत्तर प्रदेश में आगरा एक प्रसिद्ध नगर है। ताजमहल को देखने दुनिया भर के लोग वहां आते हैं। वहां पर ही श्री रमेश चंद्र जी के घर में गोभक्त अरुण माहौर का जन्म हुआ था। उनका घर आगरा के मुस्लिम बहुत मोहल्ले मंटोला में था। कई हिन्दू परिवारों ने दूसरी जगह घर बना लिये थे; पर रमेश जी की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। सबके सुख-दुख में सहभागी होने के कारण मोहल्ले में सबसे उनके अच्छे सम्बन्ध थे। अतः वे यहीं रह रहे थे।
मुस्लिम बहुल मोहल्लों में प्रायः हिन्दू परिवार रहना पसंद नहीं करते। अधिक जनसंख्या तथा भीड़भाड़ के कारण वहां गंदगी, गरीबी, अशिक्षा, शोर और लड़ाई-झगड़े का माहौल रहता है। खुलेआम पशुहत्या के कारण बीमारियां भी जल्दी फैलती हैं। अरुण जी इसी माहौल में बड़े हुए थे। बचपन से ही वे साहसी स्वभाव के थे। अतः कोई गलत काम होते देख वे चुप नहीं रह पाते थे। लड़कियों के अपहरण या हिन्दू उत्पीड़न की कोई घटना होते ही वे पीड़ित परिवार की सहायता तथा पुलिस के माध्यम से अपराधियों को दंडित कराने का प्रयास करते थे। वे अपने मोहल्ले के हिन्दुओं को यहीं डटे रहने के लिए भी प्रेरित करते थे। तीन साल पूर्व उनकी फर्नीचर की दुकान को गुंडों ने जला दिया, जिससे डर कर वे भाग जाएं; पर अरुण जी ने मोहल्ला नहीं छोड़ा।
गोरक्षा में तो अरुण माहौर के प्राण ही बसते थे। सड़क पर यदि कोई घायल गाय मिलती, तो वे उसके इलाज का प्रबन्ध करते थे। उनके पिताजी नगर कांग्रेस कमेटी में पदाधिकारी थे। उनके दादा श्री गणेशीलाल जी भी कांग्रेस में सक्रिय रहे; पर अरुण जी पिछले 15 साल से ‘विश्व हिन्दू परिषद’ से जुड़े थे। इन दिनों वे परिषद में आगरा महानगर के उपाध्यक्ष थे। उन्हें गायों की तस्करी या गोहत्या की सूचना यदि रात में भी मिलती, तो वे उसे रोकने चल देते थे। उनके तथा ‘बजरंग दल’ के युवकों के कारण हजारों गायों की रक्षा हुई तथा आगरा के विभिन्न थानों में लगभग 250 मामले दर्ज हुए।
आगरा में मुख्यतः ‘नाई की मंडी’ में गोमांस का अवैध कारोबार होता है। अरुण जी के कारण गोतस्करों को बहुत हानि हो रही थी। अतः वे उनकी आंखों में कांटे की तरह खटकने लगे। उन्होंने कई बार उन्हें जान से मारने की धमकी दी गयी; पर वे डरे नहीं। 23 फरवरी को आवारागर्दी करते हुए एक गुंडे शाहरुख से उनकी झड़प हुई थी। वह प्रायः पिस्तौल दिखाकर लड़कियों को छेड़ता था। अगले दिन उसने लोगों को धमकाया कि कल इस बस्ती से एक आदमी कम हो जाएगा। माहौल बिगड़ता देख लोगों ने थाने में कहा। समाजवादी शासन में पुलिस हिन्दू हितैषियों के प्रति प्रायः उदासीन ही रहती है। अतः उन्होंने लिखित शिकायत करने को कहा; पर अगले ही दिन 25 फरवरी, 2016 को दिनदहाड़े गुंडों ने अरुण जी की हत्या कर दी।