-पूरे राजस्थान से एक लाख से अधिक आदिवासी बंधु होंगे एकत्र
-उदयपुर की चारों दिशाओं से निकलेगी रैली
-एक ही नारा होगा बुलंद, जिन्होंने धर्म छोड़ा वे एसटी का स्टेटस भी छोड़ें
-राज्यपाल को ज्ञापन देकर संविधान में संशोधन की होगी मांग
उदयपुर, 27 अप्रैल। जनजाति समाज के जिस व्यक्ति ने अपना धर्म बदल लिया है, उसे एसटी के नाते प्रदत्त सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए। जब अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के लिए संविधान में यह नियम लागू है तो अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के लिए भी यह प्रावधान संविधान में जोड़ा जाना चाहिए। धर्म बदलने वाले अपनी चतुराई से दोहरा लाभ उठा रहे हैं, जबकि मूल आदिवासी अपनी ही मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है। इसी मांग को लेकर उदयपुर में 18 जून को जनजाति सुरक्षा मंच राजस्थान के बैनर तले हुंकार महारैली का आह्वान किया गया है। इस महारैली में पूरे राजस्थान से जनजाति समाज के लोग अपनी पारम्परिक वेशभूष एवं वाद्ययंत्रों के साथ एकत्र होंगे और धर्म बदलने वालों से एसटी का स्टेटस भी हटाए जाने की आवाज को बुलंद करेंगे। इस हुंकार महारैली को लेकर पूरे राजस्थान में तैयारियां शुरू हो गई हैं।
रैली की तैयारियों के तहत बुधवार रात उदयपुर के हिरण मगरी सेक्टर-4 स्थित विद्या निकेतन में विभिन्न संगठनों के प्रबुद्धजनों की बैठक हुई। बैठक में जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय पदाधिकारी व राजस्थान के प्रभारी भगवान सहाय ने बताया कि चूंकि राजस्थान का 80 प्रतिशत जनजाति समाज दक्षिणी राजस्थान में है। इस नाते उदयपुर जनजाति समाज के लिए महत्वपूर्ण केन्द्र भी है। इसी कारण, हुंकार महारैली का आयोजन उदयपुर में रखा गया है। पूरे राजस्थान से जनजाति समाज के बंधु 18 जून को सुबह से पहुंचना शुरू होंगे। शहर की विभिन्न दिशाओं में उनके वाहन रखने की व्यवस्था की जाएगी। वे अलग-अलग दिशाओं से रैलियों के रूप में गांधी ग्राउण्ड पहुंचेंगे। शाम 4 बजे से गांधी ग्राउण्ड में जनजाति संस्कृति के विविध रंगों को दर्शाती प्रस्तुतियों का दौर रहेगा। इसके बाद विशाल सभा होगी। सभा के बाद सभी मेहमानों को भोजन पैकेट के साथ विदा किया जाएगा। उदयपुर शहर में आने वाले मेहमानों के एक समय के भोजन की व्यवस्था उदयपुर का सर्वसमाज करेगा।
भगवान सहाय ने बताया कि इस हुंकार रैली में मांग की जाएगी कि संविधान के आर्टिकल 342 में यह संशोधन किया जाए या प्रेसिडेशियल ऑर्डर लाया जाए कि एसटी का व्यक्ति धर्मांतरित हो तो उसका एसटी का स्टेटस समाप्त होना चाहिए। जो व्यक्ति जनजाति संस्कृति की मूल आस्था से हट गया है और मूल आस्था के केन्द्रों के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहा है उसे जनजाति की सूची से हटाया ‘डी-लिस्ट’ किया जाना चाहिए। कोई भी राजनीतिक दल एसटी से धर्मांतरित व्यक्ति को किसी भी एसटी आरक्षित सीट पर टिकट न दे।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2007 में भी इसी मुद्दे पर उदयपुर में राष्ट्र शक्ति सम्मेलन हुआ था। इस आयोजन में भी जनजाति समाज के एक लाख से अधिक बंधु उदयपुर आए थे। इसके बाद इस मुद्दे को लेकर लगातार जागरूकता अभियान जारी रहे। वर्ष 2009 में डी-लिस्टिंग की मांग को लेकर हस्ताक्षर अभियान चला जिसमें राजस्थान के 2 लाख सहित देशभर के 28 लाख हस्ताक्षर तत्कालीन राष्ट्रपति को प्रेषित किए गए। पिछले वर्षों के दौरान वर्ष 2020 में डॉ. कार्तिक उरांव के जन्मदिवस 29 अक्टूबर को राजस्थान के सभी जिला कलेक्टर एवं उपखण्ड अधिकारियों के माध्यम से प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा गया। वर्ष 2022 में ग्राम सम्पर्क अभियान चलाया गया जिसमें राजस्थान के 5527 गांवों में घर-घर सम्पर्क किया गया। वर्ष 2022 में ही राजस्थान के सभी जिलों में जिला सम्मेलन आयोजित किए गए जिनमें एक लाख 65 हजार जनजाति बंधु-भगिनियों ने भाग लिया। जनजाति सुरक्षा मंच के बैनर तले सरपंच से सांसद और सड़क से संसद तक अभियान भी चलाया गया।
भगवान सहाय ने बैठक में उपस्थित सभी संगठनों से आह्वान किया कि धर्मांतरण सिर्फ एक जाति-समाज की समस्या नहीं है, अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र की समस्या है और इसके समाधान के लिए सर्वसमाज को एकजुट होना होगा। उन्होंने गुजरात के एक जनजातीय ग्राम्य क्षेत्र का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां जनजाति समाज के एक बुजुर्ग ने अपनी पीड़ा कही कि उनकी बहन के परिवार ने अचानक धर्म बदल लिया और रक्षाबंधन पर राखी बांधने आने से इनकार कर दिया। यह सिर्फ एक उदाहरण नहीं है, ऐसा हर उस जगह हो रहा है जहां धर्मांतरण हो रहा है। सिर्फ रक्षाबंधन ही नहीं, हर जनजाति परम्परा-पर्वों के साथ यह स्थिति हो रही है। यह सम्पूर्ण राष्ट्र की संस्कृति के लिए खतरा है, इसी कारण इसके समाधान के लिए सर्वसमाज को एकजुट होना होगा।
उन्हांने बताया कि झारखण्ड के जनाजाति समाज के सांसद कार्तिक उरांव ने इस मुद्दे पर विषद अध्ययन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समक्ष इसे रखा। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी इस विषय की गंभीरता समझते हुए 11 नवम्बर 1969 को इसे संसद के पटल पर रखा, लेकिन तब उत्तर-पूर्व के नेताओं ने विरोध किया। तब कार्तिक उरांव ने 322 लोकसभा सांसद और 26 राज्य सभा सांसदों का हस्ताक्षर पत्र सौंपकर पुनर्विचार का आग्रह किया। तब इस पर अध्ययन के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) बनाई गई जिसमें 22 लोकसभा सांसद और 11 राज्यसभा सांसद शामिल किए गए। इस जेपीसी की 22 बैठकें हुईं और प्रधानमंत्री को सिफारिश की गई कि संविधान में यह जोड़ा जाना देशहित में होगा कि एसटी का व्यक्ति धर्मांतरित हो तो उसका एसटी का स्टेटस समाप्त होना चाहिए। यह कार्य हो पाता उससे पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार गिर गई। इस गंभीर मुद्दे पर कार्तिक उरांव ने 20 वर्ष की काली रात विषय पर पुस्तक भी लिखी है जिसमें इस संशोधन को खुद जनजाति समाज के लिए अतिआवश्यक प्रतिपादित किया गया है।
बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक हेमेन्द्र श्रीमाली, महानगर संघचालक गोविन्द अग्रवाल भी मंचासीन थे।