Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog बलिदान दिवस देवनागरी के नवदेवता बिनेश्वर ब्रह्म “19 अगस्त/बलिदान-दिवस”
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देवनागरी के नवदेवता बिनेश्वर ब्रह्म “19 अगस्त/बलिदान-दिवस”


देवनागरी के नवदेवता बिनेश्वर ब्रह्म “19 अगस्त/बलिदान-दिवस”

पूर्वोत्तर भारत में चर्च के षड्यन्त्रों के अनेक रूप हैं। वे हिन्दू धर्म ही नहीं, तो हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि के भी विरोधी हैं। ‘बोडो साहित्य सभा’ के अध्यक्ष श्री बिनेश्वर ब्रह्म भी उनके इसी षड्यन्त्र के शिकार बने, चूंकि वे बोडो भाषा के लिए रोमन लिपि की बजाय देवनागरी लिपि के प्रबल समर्थक थे।

श्री बिनरेश्वर ब्रह्म का जन्म 28 फरवरी, 1948 को असम में कोकराझार के पास भरतमुरी ग्राम में श्री तारामुनी एवं श्रीमती सानाथी ब्रह्म के घर में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा उन्होंने अपने गांव से ही पूरी की। 1965 में कोकराझार से हाई स्कूल करते हुए उन्होंने ‘हिन्दी विशारद’ की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली।

1971 में असम की सभी स्थानीय भाषाओं के संरक्षण तथा संवर्धन के लिए हुए आंदोलन में वे 45 दिन तक डिब्रूगढ़ जेल में भी रहे। प्रारम्भ में कुछ वर्ष वे डेबरगांव तथा कोकराझार में हिन्दी के अध्यापक रहे। 1972 में उन्होंने जोरहाट से कृषि विज्ञान में बी.एस-सी. की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद वे कृषि विभाग की सरकारी सेवा में आ गये। कोकराझार तथा जोरहाट में पढ़ते समय वे उन विद्यालयों की छात्र इकाई के सचिव भी चुने गये।

साहित्य के प्रति प्रेम होने के कारण उन्होंने गद्य और पद्य की कई पुस्तकों का सृजन किया। ‘बोडो साहित्य सभा’ में उनकी सक्रियता को देखकर उन्हें क्रमशः उसका सचिव, उपाध्यक्ष तथा फिर अध्यक्ष बनाया गया। असम में बोडो भाषा की लिपि के लिए कई बार आंदोलन हुए। श्री बिनेश्वर ब्रह्म ने सदा इसके लिए देवनागरी का समर्थन किया। उनके प्रयासों से इसे स्वीकार भी कर लिया गया; पर चर्च के समर्थक बार-बार इस विषय को उठाकर देवनागरी की बजाय रोमन लिपि लाने का प्रयास करते रहे।

पूर्वोत्तर भारत सदा से ही चर्च के निशाने पर रहा है। वहां सैकड़ों आतंकी गिरोह कार्यरत हैं। उनमें से अधिकांश को देशी-विदेशी चर्च का समर्थन मिलता है। इनके ‘कमांडर’ तथा अधिकांश बड़े नेता ईसाई ही हैं। सरकारी अधिकारी, व्यापारी तथा उद्योगपतियों से फिरौती वसूलना इनका मुख्य धंधा है। इसी से इनकी अवैध गतिविधियां चलती हैं। ईसाई वोट खोने के भय से सेक्यूलरवादी राज्य और केन्द्र शासन भी इनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही नहीं करते।

एन.डी.एफ.बी. (नेशनल डैमोक्रैटिक फ्रंट आॅफ बोडोलैंड) चर्चप्रेरित ऐसा ही एक उग्रवादी गिरोह है। यह बंदूक के बल पर बोडो जनजाति के लोगों को ईसाई बनाता है। अपनी मांगों को पूरा करने के लिए यह हत्या, अपहरण, बम विस्फोट तथा जबरन धन वसूली जैसे अवैध काम भी करता रहता है।

यह गिरोह काफी समय से ‘स्वतन्त्र बोडोलैंड’ राज्य की मांग के लिए हिंसक आंदोलन कर रहा है; पर आम जनता इनके साथ नहीं है। श्री बिनेश्वर ब्रह्म ने अपने प्रयासों से कई बार इन उग्रवादी गुटों तथा असम सरकार में वार्ता कराई, जिससे समस्याओं का समाधान शांतिपूर्वक हो सके।

देवनागरी के समर्थक होने के कारण श्री ब्रह्म को ईसाई उग्रवादियों की ओर से धमकी मिलती रहती थी; पर उन्होंने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। वे देवनागरी को सभी भारतीय भाषाओं के बीच सम्बन्ध बढ़ाने वाला सेतु मानते थे। उनके प्रयास से बोडो पुस्तकें देवनागरी लिपि में छपकर लोकप्रिय होने लगीं। इससे उग्रवादी बौखला गये और 19 अगस्त, 2000 की रात में उनके निवास पर ही गोलीवर्षा कर उनकी निर्मम हत्या कर दी गयी।

इस हत्याकांड के बाद एन.डी.एफ.बी. ने इसकी जिम्मेदारी लेते हुए श्री बिनेश्वर ब्रह्म को ‘भारतीय जनता पार्टी’ का एजेंट बताया। देवनागरी के माथे पर अपने लहू का तिलक लगाने वाले ऐसे बलिदानी नवदेवता स्तुत्य हैं।

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