डॉ हेडगेवार, संघ और स्वतंत्रता संग्राम
३–केशव की प्रथम गिरफ्तारी
विद्यालय में ग्रीष्मकालीन अवकाश के समय केशवराव अपने मामा के घर नागपुर के निकट रामपयाली में चले जाते थे । वहां पर भी युवाओं के एकत्रीकरण शुरु हो गए। सभी युवाओं को न संग्राम में भाग लेने की प्रेरणा दी जाने लगी ।
प्रतिवर्ष दशहरे के दिन रामपायली नगर में रावण के पुतले जलाए जाते थे। इस बार केशव राव ने युवकों के साथ वंदेमातरम् गीत गाया और एक ओजस्वी भाषण दिया।“
आज सबसे बड़ी पीड़ादायक और शर्मनाक बात है हमारा परतंत्र होना, परतंत्र बने रहना सबसे बड़ा अधर्म है, परायों का अन्याय सहन करना भी महापाप है अत: आज विदेशी दासता के विरूद्ध खड़े होना और अंग्रेजों को सात समंदर पार भेज देना ही वास्तव में सीमा उल्लंघन है।
रावण वध का आज तात्पर्य अंग्रेजी राज का
अंत करना है।” सरकारी गुप्तचरों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर केशवराव को गिरफ्तार कर लिया गया, यह उनके जीवन की पहली गिरफ्तारी थी।
छोटी आयु देखकर जिला कलेक्टर ने केशव से क्षमा मांगने को कहा। इस पर युवा का सीना तन गया ”मैं आपके आदेश का उल्लंघन करता हूं, वंदेमातरम् । गाना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे जीवन की अंतिमश्वांस तक गाता रहूंगा।”
थोड़ी देर केशव को कारावास में रखने के बाद छोड़ दिया गया। इस घटना के पश्चात केशवराव की प्रत्येक गतिविधि पर शासकीय गुप्तचरों की नजर रहने लगी। जिलाधिकारी ने सार्वजनिक स्थानों पर केशव के भाषणों पर प्रतिबंध लगा दिया।
युवाओं में फैलते जा रहे अंग्रेज विरोध को दबाने के लिए अंग्रेजो ने रिसले-सर्कुलर नाम का एक सूचना पत्रक जारी करके वंदेमातरम् बोलने पर प्रतिबंध लगा दिया। इस समय 16 वर्षीय केशवराव नागपुर के नीलसिटी हाई स्कूल में दसवीं कक्षा का विद्यार्थी था।
इस स्कूल में भी वंदेमातरम् पर प्रतिबंध लग गया था। केशव ने अपनी युवा छात्रवाहिनी के साथ इस प्रतिबंध की धज्जियां उड़ाने का निर्णय किया। सारी योजना को गुप्त रखा गया।
जैसे ही शिक्षा विभाग के निरीक्षक और स्कूल के मुख्य अध्यापक निरीक्षण करने दसवीं कक्षा में गए, सभी छात्रों ने ऊंची आवाज में आत्मविश्वास के साथ वंदेमातरम् का उद्घोष किया और यही उद्घोष प्रत्येक कक्षा में लगे ।
सारा विद्यालय वंदेमातरम् से गूंज उठा। कौन नेता है? कहां योजना बनी ? यह सब कैसे हो गया ? निरीक्षक महोदय, मुख्य अध्यापक तथा अंग्रेज गुप्तचर सर पटकते रह गए। किसी को कुछ पता नहीं चला।
जब शासकीय अधिकारी सभी छात्रों को क्ठोर सजा देने की बात सोचने लगे तो केशवराव ने सबको बचाने के लिए अपना नाम प्रकट कर दिया यह मैंने करवाया है, वंदेमातरम् गाना हमारा अधिकार है, क्षमा नहीं मांगूगा” यह कहने पर केशवराव को विद्यालय से निकाल दिया गया।
स्कूल से निष्कासित होने के बाद भी केशवराव ने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को क्षणभर के लिए भी विराम नहीं दिया। उस समय के राष्ट्रभक्त नेताओं लोकमान्य तिलक, महर्षि अरविंद ओर डॉ. मुंजे इत्यादि की योजनानुसार यवतमाल में राष्ट्रीय विद्यापीठ नामक विद्यालय चलता था, इस विद्यालय में केशव को प्रवेश मिल गया।
दसवीं कक्षा केशवराव ने प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की और लोकमान्य तिलक के संरक्षण में डॉक्टरी की पढ़ाई करने कलकत्ता चले गए। कलकत्ता जाने का मुख्य उद्देश्य था क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में सम्मनित होकर अंग्रेजों के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी क्रान्ति को साकार करना।
क्रमशः
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