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डॉ हेडगेवार, संघ और स्वतंत्रता संग्राम- पार्ट 2

डॉ हेडगेवार, संघ और स्वतंत्रता संग्राम- पार्ट 2

इस कॉलेज के प्रबंधक तथा प्राध्यापक भी राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत थे। प्रायः अधिकांश लोग लोकमान्य तिलक एवं विपिनचंद्र पाल  द्वारा संचालित होने वाले स्वदेशी/स्वराज्य के आंदोलनों में गुप्त रूप से भागीदारी भी करते थे।

केशव के कलकत्ता में आने का मुख्य उद्देश्य सशस्त्र कांति का प्रशिक्षण लेना और पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध महाक्रांति का शुभारम्भ करना था। डॉक्टरी की अपनी पढ़ाई के साथ-साथ केशवराव हैडगेवार ने युवाओं के हाथों में सशस्त्र क्रांति की डोर थमाने के अपने वास्तविक उद्देश्य को क्षणभर के लिए भी आंखों से ओझल नहीं किया।

केशवराव हेडगेवार की एक विशेष पहचान यह थी कि वह संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मित्र बनाकर उसे अनुशीलन समिति के कार्य में लगा लेते थे। नेशनल मेडिकल कॉलेज में देश के प्रायः प्रत्येक प्रांत के विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते थे।

केशवराव ने उन सबके माध्यम से शीघ्र ही देशभर में भविष्य के महाविप्लव के लिए युवाओं को तैयार करने की तत्परता दिखाई और सफलता भी प्राप्त की।

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पिता डॉ. आशुतोष मुखर्जी, मोतीलाल घोष, विपिनचंद्र पाल तथा रासबिहारी बोस जैसे राष्ट्रभक्त नेताओं के साथ भी केशवराव ने घनिष्ठ संपर्क स्थापित कर लिया।

अपने जुझारू स्वाभाव, निरंतर परिश्रम तथा लोकसंग्रही वृत्ति होने के कारण केशवराव शीघ्र ही अन्य प्रांतों में चल रही क्रांतिकारी गतिविधियों की मुख्य कड़ी बन गए। बंगाल के कई स्थानों पर हथियारों के गुप्त कारखाने सफलतापूर्वक चल रहे थे।

यहीं से देशभर के क्रांतिकारियों को हथियारों की आपूर्ति होती थी। केशवराव हेडगेवार ने इस कार्य को भी बहुत सतर्कता के साथ निभाया। विशेषतया मध्य प्रांत के क्रांतिकारियों तक हथियारों को पहुंचाना केशवराव के परिश्रम का ही प्रतिफल था।

मध्यप्रांत के तत्कालीन शासकीय अभिलेखों में भी स्वीकार किया गया है कि हेडगेवार ने नागपुर और बंगाल के क्रांतिकारियों के बीच तालमेल बनाने में एक बड़ी सफलता प्राप्त कर ली।

अनुशीलन समिति द्वारा संचालित क्रांतिकारी क्रियाकलापों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के साथ केशवराव अन्य संस्थाओं द्वारा संचालित दोलनों और समाज सुधार के कार्यक्रमों में भी भाग लेते रहते थे।

इन आंदोलनों  तथा सेवा-प्रकल्पों में भाग लेने के उनके दो उद्देश्य होते थे।

*प्रथम-देश की स्वतंत्रता के लिए हो रहे प्रत्येक प्रयास को बल प्रदान करना, द्वितीय-युवकों के साथ सम्बंध बनाकर उनको अपने साथ जोड़ लेना । परिणामस्वरूप क्रांतिकारी देशभक्तों की एक लम्बी श्रंखला तैयार हो गयी ।
क्रमशः

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