डॉ हेडगेवार, संघ और स्वतंत्रता संग्राम /“०८-अंग्रेजों के कुचकर में फंसी कांग्रेस”
इसी समय विश्वयुद्ध के बादल मंडराने प्रारम्भ हो गए । अंग्रेजों के समक्ष अपने विश्वस्तरीय साम्राज्य को बचाने का संकट खड़ा हो गया।
भारत में भी अंग्रेजों की हालत दयनीय हो गई । देश के कोने-कोने तक फैल रही सशस्त्र क्रांति की चिंगारी, कांग्रेस के भीतर गरम-दल के द्वारा किया जा रहा स्वदेशी आंदोलन और सामान्य भारतीयों के मन में विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने की इच्छा में हो रही वृद्धि इत्यादि कुछ ऐसे कारण थे, जिनसे अंग्रेज शासक भयभीत होने लगे।
अत: इस अवसर पर उन्हें भारतीयों की सहायता की आवश्यकता अनुभव हुई । स्वभाविक ही अंग्रेजों को सशस्त्र क्रांति के संचालकों से सहायता की कोई उम्मीद नहीं थी।
व्यापारी बुद्धि वाले अंग्रेज शासक इस सच्चाई को भलीभांति जानते थे, इसलिए उन्होंने अपने (ए.ओ. ह्यूम) द्वारा गठित की गई कांग्रेस से सहायता की उम्मीद बांध ली। अंग्रेज शासकों ने यह भ्रम फैला दिया कि विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की विजय होने के बाद भारत को उपनिवेश-राज्य (डोमिनियन स्टेट)
का दर्जा दे दिया जाएगा।
विदेशी शासकों की यह चाल सफल रही। कांग्रेस के दोनों ही गुट इस भ्रमजाल में फंस कर अंग्रेजों की सहायता में लग गए। डॉ. हेडेवार के मतानुसार ‘ब्रिटिश साम्राज्य पर गहराया संकट भारत को स्वतंत्र करवाने का एक स्वर्णिम अवसर है।” इस अवसर को गंवा देना हमारी भयंकर भूल होगी।
डॉ. साहब का विचार था कि ब्रिटेन की उस समय कमजोर सैन्यशक्ति का लाभ उठाना चाहिए और राष्ट्रव्यापी सशस्त्र क्रांति का एक संगठित प्रयास करना चाहिए।
डॉ. हेडगेवार ने कई दिनों तक चर्चा करके कांग्रेस के दोनों धड़ों के नेताओं को सहमत करने का प्रयास किया, परन्तु इन सब पर न जाने क्यों, इस अवसर पर अंग्रेजों की सहायता करके कुछ न कुछ तो प्राप्त कर ही लेंगे, का भूत सवार हो गया।
यह भूत उस समय उतरा जब अंग्रेजों ने अपनी विजय के बाद भारतीयों को कुछ भी देने के बजाया अपने शिकंजे को और अधिक कस दिया।
क्रमशः
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