आध्यात्म श्रुतम्

सबके राम-15″रामतत्त्व का बीज”

सबके राम-15 “रामतत्त्व का बीज”

राम के विषय में जानने का मूल स्रोत महर्षि वाल्मीकि की रामायण है। यद्यपि पुराणों में भी रामकथा का उल्लेख मिलता है। वामन, वाराह, नारदीय, लिंग, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, पद्म, स्कंद, गरुड़ पुराण में रामकथा के प्रसंग हैं।

रामायण संस्कृत साहित्य का आरंभिक महाकाव्य है और अनुष्टुप छंदों में लिखा गया है। महर्षि वाल्मीकि को ‘आदिकवि’ माना जाता है। वे राम के समकालीन थे, लेकिन लोक में सबसे ज्यादा व्याप्ति तुलसी के रामचरितमानस की है। तुलसी ने लोकभाषा में रामकथा का बखान कर इसे जन-जन तक पहुँचाया। राम ‘जननायक’ बने। सोलहवीं शती में लिखे इस ग्रंथ का बड़ा हिस्सा बनारस में लिखा गया। सात कांडों में बँटे रामचरितमानस में छंदों की संख्या के अनुसार बालकांड और किष्किंधा कांड क्रमशः सबसे बड़े और छोटे कांड हैं।

मध्यकाल में जब हिंदू धर्म के ऊपर अनेक तरह के संकट थे। वेद और शास्त्रों का अध्ययन कम हो गया था तो इस ग्रंथ ने समूचे हिंदू समाज में नए जीवन का संचार किया।
तुलसीदास ने इसे आम लोगों तक पहुँचाने के लिए रामलीलाएँ भी कराई। इसमें बनारस में उनके विशेष मित्र ‘मेघा भगत’ ने मदद की। मेघा भगत देश में ‘रामलीलाओं के जनक’ माने जाते हैं।

संस्कृत में रामकथा पर आधारित कालिदास का ‘रघुवंश’ महाकाव्य है। इस महाकाव्य में 19 सर्गों में रघु के कुल में उत्पन्न बीस राजाओं का इक्कीस प्रकार के छंदों में वर्णन किया गया है। इसमें दिलीप, रघु, दशरथ, राम, कुश और अतिथि का विशेष वर्णन है। वे सभी राजा समाज में आदर्श स्थापित करने में सफल हुए। राम का इसमें विशद वर्णन है। उन्नीस में से छह सर्ग राम से ही संबंधित हैं।

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