आध्यात्म श्रुतम्

सबके राम-16″रामतत्त्व का बीज”

सबके राम-16 “रामतत्त्व का बीज”

भारतीय वाङ्मय उन गाथाओं को प्रेरणास्रोत बनाता है, जिनसे मानवीय चेतना की ऊर्ध्व यात्रा को दिशा मिल सके। विशेषतौर पर उस समय, जब चेतना को संकुचित करने के प्रयास किए जा रहे हों। ऐसे समय में रामतत्त्व जिस तरह देश की हर भाषा और संस्कृति में घुल गया, उसने प्रत्येक संस्कृति और परंपरा के सर्वश्रेष्ठ को स्वयं में निरूपित कर लिया।

रामकथा के पास अपना वैदिक संदर्भ है। प्राचीन धार्मिक संस्कृत साहित्य में वाल्मीकि रामायण के अतिरिक्त ‘पौलस्त्य वध’ में भी प्रारंभिक सूत्र मिलता है। यह नाराशंसी यानी युद्ध गाथा है। इसी तरह ‘सीता चरित्र’ को भी राम-गाथाओं का प्रारंभिक लिखित संस्करण मान सकते हैं। ‘महाभारत’ में चार स्थानों पर राम का उल्लेख है। वन पर्व के तीर्थयात्रा पर्व में भीम की हनुमान से रोचक भेंट होती है। हनुमान भीम को रामकथा सुनाते हैं। आरण्यक पर्व, द्रोण पर्व और शांति पर्व में भी रामकथा है।

ये प्रारंभिक ग्रंथ कथा बीज के रूप में रामतत्त्व का वैदिक स्नायु तो बनाते हैं, मगर इन कथाओं में वह ‘राम’ नहीं मिलते, जिन्हें जानकर भारत पुलकित हो उठता है। जिस रामत्व से पिछली सदियों में हर कवि और चिंतक रीझता है। इंद्र वैदिक देवता हैं। द्वादश आदित्यों में इंद्र भी सम्मिलित हैं तो विष्णु भी। विष्णु के सारे अवतार इंद्र के अवतार भी हैं। लोकायत और पौराणिक ग्रंथों, विकास युग में इंद्र कहीं पीछे छूट गए।

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