Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog आध्यात्म सबके राम-18 “रामतत्त्व के शक्ति पुंज”
आध्यात्म श्रुतम्

सबके राम-18 “रामतत्त्व के शक्ति पुंज”

सबके राम-18 “रामतत्त्व के शक्ति पुंज”

रामकथा में नारी की प्रबलता स्थान-स्थान पर आवश्यक हस्तक्षेप कराती है। अपने पति को फटकार लगाकर सन्मार्ग पर लाने का काम तारा (बाली की पत्नी) और मंदोदरी (रावण की पत्नी) करना चाहती हैं, पर यह हो न सका। बाली और रावण का अहंकार सामने आया। अगर ऐसा हो जाता तो इतिहास कुछ और ही होता। अहंकार जनित कुंठा से बाली और रावण ने स्त्री की बात का उपहास (मजाक) उड़ाया। बाद में दोनों ने इस नासमझी का परिणाम देखा और स्त्री उपेक्षा का फल भी भोगा।

इन महिलाओं के माध्यम से रामकथा बताती है कि स्त्री उपेक्षणीय नहीं है। किष्किंधा और लंका की स्त्रियाँ अपने पतियों से ज्यादा समझदार थीं। वे उत्पीड़न, अन्याय और युद्ध के विरुद्ध हैं। त्रिजटा का स्वप्न भी नारी चित्त में बैठा रावण-विरोध है।

रामचरितमानस का ‘राक्षस वध’ ‘नारी उद्धार’ से जुड़ा है। यहाँ राक्षस वध और नारी उद्धार पर्याय हैं। कथा की शुरुआत में चार स्त्रियाँ हैं- सरस्वती, पार्वती, शबरी और अहिल्या।
पहली स्वयं देवी ‘सरस्वती’ है। तुलसी अपनी नियति के खेल के लिए दो बार उनका सहारा लेते हैं- पहली बार तब, जब राम को राजा बनाने की तैयारी है। राम राजा हो गए तो राक्षस-वध कैसे होगा ? देवता सरस्वती को सक्रिय करते हैं। सरस्वती सक्रिय होती हैं। वे मंथरा की बुद्धि भ्रष्ट करती हैं। मंथरा ‘सॉफ्ट टारगेट’ है। उस योजना का उद्देश्य राम से बड़ा काम कराना है..।

सकल कहहिं कब होइहि काली।
बिघन मनावहिं देव कुचाली॥
तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा।
चोरहि चंदिनि राति न भावा॥
सारद बोलि बिनय सुर करहीं।
बारहिं बार पाय लै परहीं॥

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