आध्यात्म श्रुतम्

सबके राम-19 “रामतत्त्व के शक्ति पुंज”

सबके राम-19 “रामतत्त्व के शक्ति पुंज”

दूसरी बार ‘सरस्वती’ देवताओं के षड्यंत्र का हिस्सा नहीं बनतीं। यह अवसर था जब भरत राम को वापस लाने चित्रकूट जाते हैं। भरत की मति को भ्रमित करने देवता सरस्वती को पुनः सक्रिय करते हैं। पर इस बार सरस्वती ने देवताओं की बात नहीं मानी।
“बिधि हरि हर माया बड़ि भारी। सोउ न भरत मति सकइ निहारी॥”

मानस की दूसरी स्त्री हैं ‘पार्वती’। पार्वती जिनकी जिज्ञासा से शिव ने रामकथा सुनाई। रामकथा की वह पहली श्रोता थीं। जो पिता को भाव न देते हुए पति की प्रतिष्ठा के लिए वन में चली गईं। पति को पिता से अधिक माना। ऐसा ही सीता ने किया। पति के साथ वन गईं। सास-ससुर के साथ राजमहल की सुविधाओं में नहीं रहीं।
वहीं कैकेयी ने पति की अपेक्षा पुत्र को महत्त्व दिया। पुत्र की समृद्धि के लिए वैधव्य मंजूर किया। वे अपने स्वयं के साथ दो और महिलाओं, कौशल्या और सुमित्रा के वैधव्य का कारण बनती हैं।

रामकथा की नारीदृष्टि को समझने के लिए दो और महिलाएँ हैं- शबरी और अहिल्या।
शबरी पिछड़ी जाति की हैं। इतनी ज्ञानी नहीं हैं, पर समर्पित भक्त हैं। इसी विश्वास से राम को पाती हैं। राम की सहायता भी करती हैं। भक्ति सूत्र की अधिकारिणी हैं। राम पूरी नवधा भक्ति का उपदेश शबरी को देते हैं। जो त्याज्य है। नियति के खेल में अपवित्र है। मुक्ति की आकांक्षी है।
“पानि जोरि आगें भइ ठाढ़ी।
प्रभुहि बिलोकि प्रीति अति बाढ़ी।
केहि बिधि अस्तुति करौं तुम्हारी।
अधम जाति मैं जड़मति भारी॥”

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