आध्यात्म श्रुतम्

सबके राम-28 “रामतत्त्व के शक्ति पुंज”

सबके राम-28 “रामतत्त्व के शक्ति पुंज”

रावण-वध के पश्चात श्रीराम समुद्र के किनारे एक शिला पर शांत बैठे हैं। तभी एक स्त्री की छाया उन्हें अपने समीप आती दिखाई देती है। वे यकायक ठिठक जाते हैं। सोच में पड़ते हैं कि रणक्षेत्र में स्त्री का आगमन क्यों और कैसे ? राम इस भाव से स्वयं को समेटने लगते हैं, गलती से किसी पराई स्त्री की छाया का स्पर्श उनसे न हो जाए।
स्त्री के समीप आने पर राम बिना मुड़े, बिना देखे, वे पूछते हैं, "कौन हैं आप ? और क्या चाहती हैं?"

पता चलता है कि लंकापति रावण की पत्नी मंदोदरी अपने पति का संहार करने वाले को देखने आई है।
मंदोदरी कहती है कि “मैं देखना चाहती थी कि कौन हैं वह, जिन्होंने अजेय और प्रकांड विद्वान् रावण को मार गिराया। और ऐसा कौन सा गुण है उस व्यक्ति में, जो मेरे पति में नहीं था..?”

इससे पहले कि राम कुछ कहते, मंदोदरी अपने प्रश्न का उत्तर स्वयं देते हुए कहती है, “लेकिन मुझे समझ में आ गया कि वह भेद क्या है? एक आप हैं, जो पराई स्त्री की परछाईं को भी स्पर्श नहीं करना चाहते और एक रावण था, जिसने पराई स्त्री को अपना बनाने के लिए सबकुछ दाँव पर लगा दिया।”
एक पराई स्त्री के प्रति राम का यह मर्यादित रूप और आचरण ही उन्हें ‘पुरुषोत्तम’ बनाता है।

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