श्रुतम्

सबके राम-29 “रामतत्त्व के शक्ति पुंज”

सबके राम-29 “रामतत्त्व के शक्ति पुंज”

रामकथा ‘लोकतंत्र की जननी’ है। लोकतंत्र में दो पक्ष होते हैं- ‘पक्ष’ और ‘विपक्ष’। राम चौदह वर्ष सरकार में नहीं, विपक्ष में रहे। उनका यह जीवन विरोध में बीता।
निराला लिखते हैं-

धिक् जीवन को जो पाता ही आया विरोध, धिक् साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध जानकी! हाय उद्धार प्रिया का हो न सका, वह एक और मन रहा राम का जो न थका।।

जब पक्ष में रहे तो भी चुनौतियों से ही घिरे रहे। हमेशा चुनौतियों से मुकाबला ही उनकी नियति रही। कभी चैन से नहीं बैठे। राक्षसों का आतंक था। सब इकट्ठा हो ब्रह्मा से मिले। तब राम का आगमन हुआ। राम ने राक्षसों से विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा की। राक्षसों का दमन किया।

जनकपुर के मार्ग पर थे, तो उजड़ा आश्रम देखा, अहिल्या दिखी- अभिशप्ता, दुःखी, परित्यक्ता। पत्थर हो गई थी। राम की कृपा चाहती थी। सामाजिक दर्जे से भी गिरी थी। उठना चाहती थी। आश्रम उजाड़ था। इंद्र ने उसकी पवित्रता नष्ट की थी। राम ने अहिल्या का उद्धार किया। पतिता को सम्मान दिया। नारी को पवित्र किया। वह निरपराध थी। गलती सामान्य लेकिन दंड पूरा भुगता। राम के संपर्क ने अहिल्या को सामाजिक मर्यादा दी।

राम ने मुनियों को स्वतंत्रता दी। न टूटने वाला शिव धनुष तोड़ा। क्षत्रिय विरोधी परशुराम का मानमर्दन किया। जनकपुर से अयोध्या तक विजय की दुंदुभी बजी। दशरथ गद्गद। प्रजा प्रसन्न। भाइयों में उत्साह था। पर ईश्वर को यह स्वीकार नहीं था। राम का निर्वासन हो गया।

राम का निर्वासन शारीरिक है। मानसिक और आध्यात्मिक नहीं। निर्वासन ने राम को शक्ति दी। उनका निर्वासन समाज-परिवर्तन का कारण बना। ऋषि, साधुओं, पिछड़ों का उद्धार हुआ, अन्यायी मारे गए। न्याय की स्थापना हुई। राम का निर्वासन देश की सामाजिक और भौगोलिक एकता का कारण बना।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video