Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog जन्म दिवस फील्ड मार्शल मानेकशा “3 अप्रैल/जन्म-दिवस”
जन्म दिवस हर दिन पावन

फील्ड मार्शल मानेकशा “3 अप्रैल/जन्म-दिवस”


फील्ड मार्शल मानेकशा “3 अप्रैल/जन्म-दिवस”

20वीं शती के प्रख्यात सेनापति फील्ड मार्शल सैमजी होरमुसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशा का जन्म 3 अपै्रल 1914 को एक पारसी परिवार में अमृतसर में हुआ था। उनके पिता जी वहां चिकित्सक थे। पारसी परम्परा में अपने नाम के बाद पिता, दादा और परदादा का नाम भी जोड़ा जाता है; पर वे अपने मित्रों में अंत तक सैम बहादुर के नाम से प्रसिद्ध रहे।

सैम मानेकशा का सपना बचपन से ही सेना में जाने का था। 1942 में उन्होंने मेजर के नाते द्वितीय विश्व युद्ध में गोरखा रेजिमेंट के साथ बर्मा के मोर्चे पर जापान के विरुद्ध युद्ध किया। वहां उनके पेट और फेफड़ों में मशीनगन की नौ गोलियां लगीं। शत्रु ने उन्हें मृत समझ लिया; पर अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर वे बच गये। इतना ही नहीं, वह मोर्चा भी उन्होंने जीत लिया। उनकी इस वीरता पर शासन ने उन्हें ‘मिलट्री क्रास’ से सम्मानित किया।

1971 में पश्चिमी पाकिस्तान के अत्याचारों के कारण पूर्वी पाकिस्तान के लोग बड़ी संख्या में भारत आ रहे थे। उनके कारण भारत की अर्थव्यवस्था पर बड़ा दबाव पड़ रहा था तथा वातावरण भी खराब हो रहा था। प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपै्रल में उनसे कहा कि वे सीमा पार कर चढ़ाई कर दें। मानेकशा ने दो टूक कहा कि कुछ समय बाद उधर वर्षा होने वाली है। ऐसे में हमारी सेनाएं वहां फंस जाएंगी। इसलिए युद्ध करना है, तो सर्दियों की प्रतीक्षा करनी होगी।

प्रधानमंत्री के सामने ऐसा उत्तर देना आसान नहीं था। मानेकशा ने यह भी कहा कि यदि आप चाहें तो मेरा त्यागपत्र ले लें; पर युद्ध तो पूरी तैयारी के साथ जीतने के लिए होगा। इसमें थल के साथ नभ और वायुसेना की भी भागीदारी होगी। इसलिए इसकी तैयारी के लिए हमें समय चाहिए।

इंदिरा गांधी ने उनकी बात मान ली और फिर इसका परिणाम सारी दुनिया ने देखा कि केवल 14 दिन के युद्ध में पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने अपने सेनापति जनरल नियाजी के नेतृत्व में समर्पण कर दिया। इतना ही नहीं, तो विश्व पटल पर एक नये बांग्लादेश का उदय हुआ। इसके बाद भी जनरल मानेकशा इतने विनम्र थे कि उन्होंने इसका श्रेय जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा को देकर समर्पण कार्यक्रम में उन्हें ही भेजा।

जनरल मानेकशा बहुत हंसमुख स्वभाव के थे; पर हर काम को वे पूरी निष्ठा से करते थे। देश की स्वतंत्रता के समय वे सेना संचालन निदेशालय में लेफ्टिनेंट कर्नल थे। 1948 में उन्हें इस पद के साथ ही ब्रिगेडियर भी बना दिया गया। 1957 में वे मेजर जनरल और 1962 में लेफ्टिनेंट जनरल बने।

8 जून 1969 को उन्हें थल सेनाध्यक्ष बनाया गया। 1971 में पाकिस्तान पर अभूतपूर्व विजय पाने के बाद उन्हें फील्ड मार्शल के पद पर विभूषित किया गया। 1973 में उन्होंने सेना के सक्रिय जीवन से अवकाश लिया।

जिन दिनों देश में घोर अव्यवस्था चल रही थी, तो इंदिरा गांधी ने परेशान होकर उन्हें सत्ता संभालने को कहा। जनरल मानेकशा ने हंसकर कहा कि मेरी नाक लम्बी जरूर है; पर मैं उसे ऐसे मामलों में नहीं घुसेड़ता। सेना का काम राजनीति करना नहीं है। इंदिरा गांधी उनका मुंह देखती रह गयीं।

26 जून, 2008 को 94 वर्ष की सुदीर्घ आयु में तमिलनाडु के एक सैनिक अस्पताल में उनका देहांत हुआ। यह कितने शर्म की बात है कि फील्ड मार्शल होते हुए भी श्री मानेकशा के अंतिम संस्कार में भारत सरकार का कोई बड़ा अधिकारी शामिल नहीं हुआ।

Exit mobile version