राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चौथे सरसंघचालक प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया का जन्म 29 जनवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले की अभियंता कॉलोनी में पिता कुँवर बलबीर सिंह और माता ज्वाला देवी के यहाँ हुआ था। उनका परिवार मूलत: उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले के बनैल पहासू गाँव का निवासी था। रज्जू भैया अपने दादा ठाकुर मेहताब सिंह के काफी नजदीक थे, जिनका जन्म वर्ष 1867 में हुआ था और वे अपने कठिन परिश्रमी जमींदार थे। एक बार वे आर्य समाज के नेता स्वामी दयानंद को देखने के लिए गए। उसी दिन से पूरा परिवार शाकाहारी बन गया।
शिक्षा – रज्जू भैया ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की। उनकी मौखिक परीक्षा लेने नोबेल पुरस्कार विजेता सीवी रमन आए थे और वह उनकी प्रतिभा से बहुत ही प्रभावित हुए। सुप्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा ने भी उन्हे अपने साथ शोध करने का आमंत्रण तत्कालीन सरसंघचालक पूज्य गुरुजी के माध्यम से भेजवाया था। वह पूर्व का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्राध्यापक नियुक्त हुए । वे एक लब्ध प्रतिष्ठ वैज्ञानिक थे और उनके अध्यापन और शोध को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली थी।
स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय- उन्होंने संघ में प्रवेश वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के बाद लिया था। रज्जू भैया ने इस आंदोलन में प्रयाग (इलाहाबाद) से बड़ी ही सक्रियता के साथ भाग लिया था और उनकी बातचीत वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के साथ होती रहती थी, जैसे पुरुषोत्तम दास टंडन, लाल बहादुर शास्त्री आदि। जब ऐच्छिक परिणाम के बिना आंदोलन समाप्त हो गया, चारों ओर एक निराशा छा गई। इस दौरान रज्जू भैया का संघ से परिचय (इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान) हुआ।
संघ प्रवेश- वे अपने एक सहपाठी के माध्यम से संघ के प्रचारक बापूराव मोघे के संपर्क में आए; इस सहपाठी का नाम था—श्यामनारायण श्रीवास्तव और एक और छात्र था शांताराम, जो उनका पड़ोसी था। उन्होने मोघे जी के सुझाव पर कई पुस्तकें पढ़ीं, जिनसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मूल सिद्धांतों और परिप्रेक्ष्य को समझने में मदद मिली। इन पुस्तकों में डॉक्टर जी की लघु जीवनी, राधा कुमुद मुखर्जी की ‘फंडामेंटल यूनिटी ऑफ इंडिया’, वासुदेव शरण अग्रवाल की ‘भारत की एकता के आधारभूत सिद्धांत’, और सावरकर की ‘हिंदू पदपदशाही’ शामिल थीं।
पूर्णकालिक जीवन- भौतिकी के सिद्धांतों में डूबे रहने वाले रज्जू भैया को काशी में गुरू गोलवलकर से मिलने और उनका भाषण सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। गुरुजी के द्वारा पौने दो घंटे तक दिया गया सुप्रसिद्ध भाषण ‘शिवाजी का जय सिंह को पत्र’ सुन कर वह इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना जीवन संघ को देने का निर्णय कर लिया।
रज्जू भैया ने संघ में विभिन्न दायित्वों का निर्वहन किया। वह 1994 में संघ के चौथे सरसंघचालक बने।
संदेश- वर्ष 1995 के विजयादशमी के वार्षिक संबोधन में रज्जू भैया ने जोर देकर कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दैनिक शाखा आयोजन की रीति समाज में चरित्र-निर्माण का एक आदर्श तरीका है, जो अंततः समाज में परिवर्तन ला देगा। सरकारी कर्मचारी या सरकार इस प्रकार का परिवर्तन नहीं ला सकते। यह केवल दृढ़ चरित्रों के पुरुष और स्त्रियाँ ही कर सकते हैं। और यही वह कार्य है, जिसे संघ कर रहा है। यह उन स्त्री-पुरुषों को तैयार करने का काम करता है, जो समाज में परिवर्तन ला सकें।