तेजस्विनी महिला सम्मेलन का भव्य आयोजन संपन्न
महिला समन्वय भीलवाड़ा द्वारा एक दिवसीय भव्य ‘तेजस्विनी महिला सम्मेलन’ का आयोजन प्रातः 10:00 बजे से सायं 4:00 बजे तक जांगिड़ छात्रावास में किया गया। महिला समन्वय की संयोजिका सुशीला जी जाट, सुशीला जी पारीक और सुषमा जी विश्नोई थी। यह सम्मेलन मुख्यतः 3 सत्रों में विभाजित था। प्रथम सत्र में मंचासीन अतिथियों में बतौर मुख्य वक्ता राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय सह कार्यवाहिका माननीय अलका जी ईनामदार, बतौर मुख्य अतिथि राजस्थान पुलिस कमांडो राजकुमारी जी गढ़वाल, बतौर विशिष्ट अतिथि राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय निधि प्रमुख वंदना जी वजीरानी और कार्यक्रम संयोजिका सुशीला जी जाट थे। गणेश वंदना और दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम आरंभ हुआ। प्रथम सत्र में मुख्य वक्ता के तौर पर अलका दीदी ने अपने उद्बोधन में बताया कि एकमात्र भारत ऐसा सशक्त राष्ट्र है, जहां 1860 में महिलाओं को मतदान का अधिकार प्राप्त हो गया था। शास्त्रानुसार स्त्री पुरुष एक ही भगवान के दो रूप हैं। हमारे देश में तो सनातन काल से ही समानता का व्यवहार रहा है। पर्दा प्रथा अथवा घूंघट हमारी संस्कृति नहीं थी। हमारे धर्म में नदियों और गौ को भी माता माना जाता है, तो स्त्री तो पूजनीय है। मध्यकाल में आक्रमणकारियों के कारण समृद्ध संस्कृति में कुछ बदलाव आए, परंतु आज अधिकारों के युद्ध में भ्रमित होती इस नारी शक्ति को आवश्यकता है अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने की। यदि स्त्री पुरुष साथ मिलकर राष्ट्र और समाज के कल्याण हेतु अग्रसर होंगे, तो नव निर्माण हो सकता है। त्याग की इस वीर धरा पर मातृशक्ति का आह्वान किया कि हम त्याग को आचरण में लाएं, देश के प्रति समय का समय के दान का संकल्प लें।
द्वितीय सत्र चर्चा सत्र रहा, जिसके तहत आयु के आधार पर विभाजित तीन घटों में महिला शक्ति संबंधी अनेक विषयों पर चर्चा ली गई। चर्चा प्रवर्तक के तौर पर प्रथम घट में वंदना जी मित्तल, द्वितीय घट में सुषमा जी विश्नोई, तृतीय घट में ज्योति जी वर्मा की उपस्थिति रही। उपस्थित सभी मातृशक्ति ने सक्रिय भागीदारी निभाते हुए अपने अपने विचार रखे।
दुर्गा स्तुति, दीप प्रज्वलन और अतिथि स्वागत के साथ तृतीय सत्र आरंभ हुआ। तृतीय सत्र में मंचासीन अतिथियों में बतौर मुख्य वक्ता महिला समन्वय की प्रांत संयोजिका नीलप्रभा जी, मुख्य अतिथि मनोमय टेक्सटाइल से पल्लवी जी लढा, विशिष्ट अतिथि सेवानिवृत्त प्रधानाचार्या कृष्णा जी चित्तौड़ा और कार्यक्रम संयोजिका सुशीला जी पारीक थे। मुख्य वक्ता नीलप्रभा दीदी ने उद्बोधन में नारी शक्ति का आह्वान किया कि मात्र एक समाज, एक व्यक्ति की इच्छाशक्ति से देश नहीं चलेगा। हम सभी को संगठित होकर राष्ट्र रूपी इस इमारत में ईंट, मिट्टी, पत्थर की भूमिका निभानी होगी। सर्वप्रथम हम हमारी नई पीढ़ी के निर्माण का अवलोकन करें कि आज सोशल मीडिया में वे क्या देखते हैं और सीखते हैं। यदि हम हमारे बच्चों को कुंठा और निराशा के घेरे में नहीं देखना चाहते तो उनके समुचित विकास हेतु जागरूक और प्रयत्नशील रहें। इसके लिए आवश्यक है कि हम उनसे मित्रवत व्यवहार करें। उनमें सेवा और समर्पण का भाव निर्माण करें। मातृ शक्ति अपने परिवार , समाज और राष्ट्र के प्रति संवेदनशील दृष्टि रखें। हमारे पूर्वजों की अनमोल विरासत का भली भांति संरक्षण करने हेतु प्रतिबद्ध हों।
इस सम्मेलन में मुख्य विषय भारतीय स्त्री दर्शन, महिलाओं की स्थानीय समस्या, स्थिति एवं समाधान और देश के विकास में महिलाओं की भूमिका पर विचार विमर्श रहा। इस सम्मेलन में कुछ मुख्य आकर्षण भी शामिल रहे जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम, वीरांगनाओं की प्रदर्शनी, स्वदेशी उत्पादों के स्टॉल आदि। कार्यक्रम में भीलवाड़ा के आसपास के कई क्षेत्रों जैसे बीगोद, शाहपुरा, जहाजपुर, मांडल, आसींद, करेड़ा आदि से माताओं बहनों ने भाग लिया। मातृशक्ति की कुल उपस्थिति 2000 के लगभग रही। मुख्य कार्यकर्ताओं में कीर्ति सोलंकी, मनीषा जाजू, रेखा सोनी, संजना माली, नीलू मालू, विनीता तापड़िया, रिंकू बाहेती, प्रतिभा माली, अर्पिता दाधीच, सीमा गोयल, खुशबू शुक्ला, चित्रा जी, रेखा कुमावत, मधुबाला यादव, यशोदा मंडोवरा, शकुंतला सोनी, सुनीता जीनगर, प्रीति श्रीवास्तव, वंदना सेन, प्रेमलता, ज्योति वर्मा, विजयलक्ष्मी, ऋतु गुजराती, विजयश्री आदि का योगदान रहा।



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