जन्म दिवस हर दिन पावन

उड़ीसा में संगठन के रचनाकार हरिहर नंदा “17 जुलाई /जन्म-दिवस”


उड़ीसा में संगठन के रचनाकार हरिहर नंदा “17 जुलाई/जन्म-दिवस”

संपूर्ण भारत की तरह उड़ीसा में भी संघ कार्य का बीजारोपण महाराष्ट्र से आये प्रचारकों ने किया; पर उनके परिश्रम, समर्पण भाव और कार्य कुशलता से क्रमशः उड़ीसा में भी कार्यकर्ताओं की पौध तैयार होने लगी। शुरुआती दौर में जो लोग जीवनव्रती प्रचारक बने, उनमें ‘हरिहर दा’ के नाम से प्रसिद्ध श्री हरिहर नंदा को बड़े आदर से याद किया जाता है।

हरिहर दा का जन्म 17 जुलाई, 1936 को जिला बालेश्वर के ग्राम नाइकुड़ी में हुआ था। यद्यपि उनका पैतृक ग्राम उसी जिले में बलियापाटी था। उनके पिता श्री कृतिवास नंदा तथा माता श्रीमती कस्तूरीमणि देवी थीं। पांच भाई बहिनों में उनका नंबर दूसरा था। उनकी प्राथमिक शिक्षा इड़दा प्राथमिक विद्यालय और फिर बालेश्वर के जिला स्कूल में हुई। बालेश्वर के फकीर मोहन काॅलेज से इंटरमीडिएट तथा कोलकाता के सिटी काॅलेज से बी.एस-सी. कर उन्होंने रूपसा, जामशूली तथा इड़दा के हाई स्कूलों में अध्यापन कार्य किया। इस दौरान उन्होंने कोलकाता वि.वि. से कानून की डिग्री भी प्राप्त की।

बालेश्वर में हाई स्कूल में पढ़ते समय तत्कालीन विभाग प्रचारक सदानंद पांतेवाने के संपर्क में आकर वे स्वयंसेवक बने। शाखा कार्य में कई जिम्मेदारियां निभाते हुए 1957 से 60 तक संघ शिक्षा वर्ग के तीनों वर्ष के प्रशिक्षण भी उन्होंने प्राप्त किये। कोलकाता में पढ़ते हुए उन्हें संघ कार्य के विस्तार के लिए नक्सलबाड़ी जैसे खतरनाक क्षेत्र में भी भेजा गया।

संघ के विचारों के प्रसार के लिए उड़ीसा में एक अखबार की जरूरत थी। अतः 1964 में एक साप्ताहिक पत्र ‘राष्ट्रदीप’ प्रारम्भ कर हरिहर दा उसके संस्थापक संपादक बनाये गये। 1974 तक उन्होंने यह काम संभाला। इस दौरान वे कटक के जिला प्रचारक भी रहे। 1974 में उन्हें उड़ीसा प्रांत कार्यवाह की जिम्मेदारी दी गयी। अब पूरे प्रांत में उनका प्रवास होने लगा।

लेकिन 1975 में इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोप दिया। संघ पर भी प्रंतिबंध लगा दिया गया। ऐसे कठिन समय में हरिहर दा ने भूमिगत रहकर पूरे प्रांत में सत्याग्रह का संचालन किया। आपातकाल समाप्त होने पर तत्कालीन प्रांत प्रचारक श्री बाबूराव पालधीकर को क्षेत्र प्रचारक बनाकर कोलकाता भेज दिया गया। अब हरिहर दा को प्रांत प्रचारक की जिम्मेदारी मिली। उन्होंने सघन प्रवास कर शाखा तथा संघ के समविचारी संगठनों के काम को नीचे तक फैलाया। इसीलिए उन्हें उड़ीसा में संगठन का रचनाकार माना जाता है। वनवासी बहुल राज्य होने के कारण उड़ीसा में ईसाई मिशनरियों का काम बहुत पुराना है। उनसे कई बार टकराव भी होता था; पर हरिहर दा साहसी स्वभाव के थे। उनके नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने कई जगहों से मिशनरियों को खदेड़ दिया।

1978 से 1996 तक प्रांत प्रचारक रहने के बाद उन्हें क्रमशः क्षेत्र बौद्धिक प्रमुख, क्षेत्र प्रचार प्रमुख और फिर हिन्दू जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक की जिम्मेदारी मिली। इन दायित्वों को भी उन्होंने लम्बे समय तक निभाया। आयु बढ़ने पर जब स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं आने लगीं, तो उन्हें सक्रिय काम से अवकाश दे दिया गया। इस दौरान वे यकृत के कैंसर से पीडि़त हो गये। इलाज के बावजूद रोग बढ़ता गया और उसी के चलते 11 मार्च, 2019 को ब्रह्म मुहूर्त में भुवनेश्वर के सम अस्पताल में उनका निधन हुआ।

हरिहर दा ने प्रचुर मौलिक लेखन के साथ श्री गुरुजी, बाबासाहब आप्टे, शेषाद्रिजी, दत्तोपंत ठेंगड़ी, वीर सावरकर, भाऊ साहब भुस्कुटे आदि की कई महत्वपूर्ण पुस्तकों के ओडि़या भाषा में अनुवाद भी किये। वे अच्छे वक्ता होने के साथ ही अच्छे गीतकार भी थे। उन्होंने ओडि़या में संघ के कई गीतों की रचना की, जिन्हें आज भी वहां की शाखाओं में गाया जाता है।

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