Welcome to Vishwa Samvad Kendra, Chittor Blog इतिहास “हिंदू साम्राज्य दिवस”/ ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, इतिहास स्मृति
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“हिंदू साम्राज्य दिवस”/ ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, इतिहास स्मृति

“हिंदू साम्राज्य दिवस”/ ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, इतिहास स्मृति

-ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का दिवस है।

-मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से भारत में विशेष संकटों का सूत्रपात हुआ। विजय नगर के साम्राज्य का जब लोप हो गया तो समाज में एक निराशा सी व्याप्त हो गई। शिवाजी के पूर्व के समय में ऐसी ही परिस्थिति थी।

-शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक होना यह केवल शिवाजी महाराज के विजय की बात नहीं है। इस देश के धर्म, संस्कृति व समाज का संरक्षण कर हिंदुराष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करने के जो प्रयास चले थे, इन सारे प्रयोगों के प्रयासों की अंतिम सफल परिणति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक है।

-शिवाजी से पूर्व लंबे समय तक भारतीय राजा शत्रुओं से लड रहे थे, विभिन्न प्रकार की रणनीति का प्रयोग कर रहे थे, संत लोग समाज में एकता लाने के, उन को एकत्र रखने के, उनकी श्रद्धाओं को बनाये रखने के लिये अनेक प्रकार के प्रयोग चला रहे थे। कुछ तात्कालिक सफल हुए। कुछ पूर्ण विफल हुए। लेकिन जो सफलता समाज को चाहिये थी वह कहीं दिख नहीं रही थी।

-यह केवल शिवाजी महाराज की विजय नहीं है। अपितु हिंदू राष्ट्र की अपने शत्रुओं पर विजय है। इस समाज की पाँच सौं साल की समस्या का निदान शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक में हो गया। इसी लिये उस का महत्व है।

-शिवाजी महाराज का पुरुषार्थ देखने के बाद सबको भरोसा हो गया कि अगर इस का हल ढूँढकर, फिर से हिंदू समाज, हिंदू धर्म, संस्कृति, राष्ट्र को प्रगति पथ पर अग्रसर कर सकता है ऐसा कोई एक व्यक्ति है तो वह शिवाजी महाराज है और इसलिये औरंगजेब की चाकरी पर लात मार कर कवि भूषण दक्षिण में आये और अपनी शिवाबावनी लेकर उन्होंने शिवाजी महाराज के सामने उसका गायन किया। भूषण को धन या मान की जरूरत नहीं थी। वे औरंगजेब के दरबार में कवि थे ही। लेकिन वे हिंदू थे। देशभक्त थे। देश में सब प्रकार का उच्छेद करने वाले इन अधर्मियों को, विधर्मियों को उन की स्तुति के गान सुनाना उनकी प्रवृत्ति में नहीं था…

-शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक, संपूर्ण हिंदूराष्ट्र के लिये एक संदेश था कि यह विजय का रास्ता है। इस पर चलो। शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का प्रयोजन ही यह था। उनका उद्यम अपने लिये नहीं था। उनके अपने व्यक्तिगत कीर्ति, सन्मान के लिये सत्ता संपादन नहीं किया। उन की तो यह वृत्ति ही नहीं थी।

-स्वार्थ की बात तो दूर रही शिवाजी महाराज को अपने प्राणों से भी मोह नहीं था। छत्रसाल जो आये थे देशकार्य में सेवा का अवसर माँगने, उनको उन्होंने उपदेश किया, “तुम नौकर बनने के लिये हो क्या? क्षत्रिय कुल में जन्मे तुम सेवा करोगे दूसरे राजाओं की ? अपना राज्य बनाओ।” यह नहीं कहा कि वहाँ राज्य बनाकर मेरे राज्य से जोड दो, या मेरा मांडलिक बनो तब मै मदद करूँगा। ऐसा नहीं कहा उन्होंने। क्योंकि यह उन्हें करना ही नहीं था। उनका उद्देश्य ऐसी अपनी एक छोटी जागीर, एक राज्य, सब राजाओं में अधिक प्रभावी एक राजा, ऐसा बनना नहीं था।

-छत्रपति शिवाजी महाराज ने 340 साल पहले स्वराज्य, स्वधर्म, स्वभाषा और स्वदेश के पुनरुत्थान के लिये जो कार्य किया है, उस की तुलना नहीं हो सकती. उनका राज्याभिषेक एक व्यक्ति को राजसिंहासन पर बिठाना, इतने तक सीमित नहीं था. शिवाजी महाराज मात्र एक व्यक्ति नहीं, वे एक विचार और एक युगप्रवर्तन के शिल्पकार थे.

-भारत एक सनातन देश है, यह हिंदुस्थान है, और यहां पर अपना राज होना चाहिये. अपने धर्म का विकास होना चाहिये, अपने जीवनमूल्यों को चरितार्थ करना चाहिये. शिवाजी महाराज का जीवनसंघर्ष इसी सोच को प्रस्थापित करने के लिये था. वे बार बार कहा करते थे कि, ‘यह राज्य हो, यह परमेश्वर की इच्छा है. मतलब स्वराज्य संस्थापना यह ईश्वरीय कार्य है. मैं ईश्वरीय कार्य का केवल एक सिपाही हुँ।“

-छत्रपति शिवाजी महाराज का शासन भोंसले घराने का शासन नहीं था. उन्होंने परिवार वाद को राजनीति में स्थान नहीं दिया. उनका शासन सही अर्थ में प्रजा का शासन था. शासन में सभी की सहभागिता रहती थी. सामान्य मछुआरों से लेकर वेदशास्त्र पंडित सभी उनके राज्यशासन में सहभागी थे.छुआछूत का कोई स्थान नहीं था. पन्हाल गढ़ की घेराबंदी में नकली शिवाजी जो बने थे, उनका नाम था, शिवा काशिद. वे जाति से नाई थे. अफजलखान के समर प्रसंग में शिवाजी के प्राणों की रक्षा करनेवाला जीवा महाला था. और आगरा के किले में कैद के दौरान उनकी सेवा करने वाला मदारी मेहतर था. उनके किलेदार सभी जाति के थे.

विस्तृत जानकारी:

हिन्दू ह्रदय सम्राट व मराठा गौरव की उपाधि से अंलकृत पश्चिम में भारतीय गणराज्य के महानायक छत्रपति शिवाजी का जन्म 19 फरवरी ,1630 को पुणे के जुनार स्थित शिवनेरी दुर्ग में शाहजी भोंसले और माता जीजाबाई के घर हुआ | शिवाजी का नाम क्षेत्रीय देवी शिवायी के नाम पर रखा गया था ..

माता जीजाबाई धार्मिक स्वभाव की वीरांगना नारी थीं, उनकी पहली गुरु थी जो रामायण, महाभारत के साथ शिवाजी को भारतीय वीरों और महापुरुषों की कहानियां सुनाती थी
दादा कोणदेव के संरक्षण में शिवाजी ने युद्ध कौशल की सारी कलाएं सीखी | शिवाजी को गुरिल्ला युद्ध या छापामार युद्ध का आविष्कारक माना जाता है |
शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास थे | छत्रपति शिवाजी तुलजा भवानी के उपासक थे |

1645 के आसपास शिवाजी ने अपनी रणनीति से बीजापुर सल्तनत के तहत पुणे के आसपास इनायत खां से तोरण, फिरंगोजी नरसाला से चाकन और आदिलशाह के गवर्नर से कोंडाना किले जीते, इसके साथ ही सिहंगढ़ और पुरंदर के किले भी उनके अधिपत्य में शामिल थे।

प्रतापगढ़ के युद्ध में शिवाजी के नेतृत्व में मराठा सेना ने बीजापुर सल्तनत के 3,000 सैनिको को मौत के घाट उतार दिया | बीजापुर सल्तनत के साथ संघर्ष के चलते शिवाजी ,औरंगजेब के निशाने पर आ गए |

1659 में, आदिलशाह ने अपने सबसे बहादुर सेनापति अफज़ल खान को शिवाजी को मारने के लिए भेजा। शिवाजी और अफज़ल खान 10 नवम्बर 1659 को प्रतापगढ़ के किले के पास एक झोपड़ी में मिले। अफज़ल खान ने शिवाजी के ऊपर वार किया लेकिन अपने कवच की वजह से वह बच गए, और फिर शिवाजी ने अपने बाघ नख (Tiger’s Claw) से अफज़ल खान पर हमला कर दिया। हमला इतना घातक था कि उसकी मृत्यु हो गई।
औरंगजेब ने अपने मामा शाइस्ता खान को शिवाजी पर आक्रमण करने के लिए भेजा। शाइस्ता खान के हमले के बाद शिवाजी को अपने कई किले गंवाने पड़े, लेकिन कुछ समय बाद शिवाजी ने प्रतिकार किया और मुगल व्यापार के प्रमुख केंद्र सूरत बंदरगाह को कब्जे में ले लिया

11 जून 1665 को शिवाजी और औरंगजेब के प्रतिनिधि जयसिंह के बीच पुरंदर की संधि हुई | इसके अंतर्गत शिवाजी ने 23 किले और 4 लाख की राशि मुग़ल शासक औरंगजेब को दी |
औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा बुला लिया उद्देश्य था उनकी सैन्य क्षमता से अफगानिस्तान तक मुग़ल सत्ता का विस्तार करना, शिवाजी अपने 8 वर्षीय बेटे संभाजी के साथ औरंगजेब के दरबार में गए , उन्होंने आत्मसम्मान के लिए औरंगजेब का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो औरंगजेब ने 5000 सैनिकों के पहरे में उन्हे नज़रबंद कर दिया, अपनी बुद्धिमता से वे 17 अगस्त 1666 को संभाजी सहित औरंगजेब की कैद से मुक्त हो गए |
1670 में अंग्रेजों द्वारा शिवाजी की सेना को युद्ध सामग्री बेचने से इनकार करने के चलते बंबई में धावा बोला, यह संघर्ष 1971 तक चला | जब अंग्रेजो ने डांडा – राजपुरी के आक्रमण में समर्थन से इंकार कर दिया तो उन्होंने राजापुर में अंग्रेजों की फैक्ट्री को लूट लिया |

6 जून 1674 को रायगढ़ में उनका राज्यरोहण समारोह हुआ | शिवाजी के नेतृत्व में मराठों ने दक्खन के सभी राज्यों को एकीकृत हिन्दू साम्राज्य के अधीन स्थापित किया | उन्होंने खानदेश , बीजापुर , कारवार , कोल्कापुर , जांजिरा , रामनगर और बेलगाम आदि रियासतों के साथ वेल्लोर और जिंजी पर भी अधिपत्य स्थापित किया। तंजावुर और मैसूर भी उन्ही के अधीन थे |
अपने अधीन आने वालो किलों के नाम उन्होंने संस्कृत भाषा में रखे | वह एक प्रखर हिन्दू शासक थे लेकिन उन्होंने सभी के प्रति सहिष्णुता दिखाई |

शिवाजी ने महिलाओ को सम्मान दिया , वे जाति प्रथा के घोर विरोधी थे
उन्होंने किसानों और सरकार के बीच से बहुत समय से प्रचलित आढ़ती व्यवस्था को हटाकर राजस्व संग्रह करने के लिए रैयतवाडी व्यवस्था प्रारंभ की |

छत्रपति शिवाजी की शासन प्रणाली अष्टप्रधान चलाते थे, इनमें मंत्रियों का प्रधान-पेशवा ,वित्त और राजस्व के प्रमुख-अमात्य, राजा के दैनंदिन कार्यों का सहायक-मंत्री, दफ्तरी कार्य का प्रमुख-सचिव, विदेश मामलों का प्रमुख-सुमंत, सेना का प्रधान-सेनापति, दान व धार्मिक मामलों का प्रमुख-पंडितराज और न्याय मामलों का प्रमुख-न्यायधीश आदि प्रमुख थे।
शिवाजी हिन्दू धर्म व परंपरा के प्रबल पक्षधर थे इसलिए उनके प्रत्येक अच्छे कार्य व अभियान का श्रीगणेश दशहरे के अवसर पर होता था..

शिवाजी ने अपने 350 मावल योद्धाओं को लेकर औरंगजेब के मामा शाइस्ता खान पर धावा बोला था जिसमें वह खिड़की से कूदकर जान तो बचा गया लेकिन उसकी चार उंगलियां कट गयीं..
शिवाजी ने काफी कुशलता से अपनी सेना को खड़ा किया था। उनके पास एक विशाल नौसेना (Navy) भी थी। जिसके प्रमुख मयंक भंडारी थे। शिवाजी ने अनुशासित सेना तथा सुस्थापित प्रशासनिक संगठनों की मदद से एक निपुण तथा प्रगतिशील सभ्य शासन स्थापित किया। उन्होंने सैन्य रणनीति में नवीन तरीके अपनाएं जिसमें दुश्मनों पर अचानक आक्रमण करना जैसे तरीके शामिल थे

शिवाजी महाराज ने समयानुसार समाज में जो जो परिवर्तन होना चाहिये वह सोचकर परिवर्तन किया, बेधडक किया। नेताजी पालकर को वापस हिंदू बना लिया, बजाजी निंबालकर को फिर से हिंदू बना लिया। केवल बना ही नहीं लिया उन को समाज में स्थापित करने के लिये उन से अपना रिश्ता जोड दिया। विवेक था। दृष्टि थी।

तलवार के बल पर इस्लामीकरण हो रहा था। शिवाजी महाराज की दृष्टि क्या थी? विदेशी मुसलमानों को चुन चुन कर उन्होंने बाहर कर दिया। अपने ही समाज से मुस्लिम बने समाज के वर्ग को आत्मसात करने हेतु अपनाने की प्रक्रिया उन्होंने चलायी। कुतुबशाह को अभय दिया। लेकिन अभय देते समय यह बताया की तुम्हारे दरबार में जो तुम्हारे पहले दो वजीर होंगे वे हिंदू होंगे। उसके अनुसार व्यंकण्णा और मादण्णा नाम के दो वजीर नियुक्त हुए और दूसरी शर्त ये थी की हिंदू प्रजा पर कोई अत्याचार नहीं होगा।

पुर्तगाली गवर्नर और पुर्तगाली सेना की शह पर मतांतरण करने मिशनरी आये हैं ये समझते ही गोवा पर चढ गये। इन को हजम करना है इस का मतलब, अपने धर्म के बारे में ढुलमुल नीति नहीं। सीधा आक्रमण किया। चिपळूण के पास गये। परशुराम मंदिर को फिर से खडा किया। औरंगजेब के आदेश से, तब काशी विश्वेश्वर का मंदिर टूटा था। औरंगजेब को पत्र लिखा कि तुम राजा बने हो, दैवयोग से और ईश्वर की कृपा से। और ईश्वर की आँखों में सारी प्रजा समान है। ईश्वर हिंदु मुसलमान ऐसा भेद नहीं करता। तुम न्याय से उसका प्रतिपालन करो, तुम अगर हिंदूंओं के मंदिर तोडने जैसे कारनामे करोगे तो मेरी तलवार लेकर मुझे उत्तर में आना पडेगा।

शिवाजी महाराज का राज्य वहाँ नहीं था। शिवाजी महाराज का राज्य बहुत छोटा था। दक्षिण में था। शिवाजी महाराज के जीवन काल में वह राज्य काशी तक जायेगा ऐसी भविष्यवाणी कोई कर नहीं सकता था। फिर भी शिवाजी महाराज ने यह पत्र लिखा क्यों कि काशी विश्वेश्वर हमारे राष्ट्र का श्रद्धास्थान है। यह मेरा राष्ट्र कार्य है। लेकिन ऐसा करते समय जो मुसलमान बन गये है उनका क्या करना? प्रेम से जोडो। बने तक वापस लाओ। ये सारी दृष्टि उन की करनी में थी।

समय कहाँ जा रहा है और क्या करना चाहिये इसकी अद्भुत दृष्टि उनके पास थी और इसलिये यूरोप से मुद्रण करनेवाला, एक यंत्र, पुराना कीले लगाकर छाप करने वाला, उस को मंगवाकर, उसका अध्ययन करते हुए वैसा यंत्र बनाने का प्रयास, मुद्रण कला शुरू करने का प्रयास उन्होंने करवाया।

विदेशियों से अच्छी तोपें, अच्छी तलवारें ली और वैसी तोपें, वैसी तलवार अपने यहां बने इसकी चिंता की। उन्होंने स्वराज्य की सुरक्षा के लिये एक बहुत पक्का सूचना तंत्र गुप्तचरों के सुगठित व्यापक जाल के माध्यम से खडा किया था।

सागरी सीमा अपने देश की सुरक्षा है, वहाँ से ही आक्रमण के लिये सीधा रास्ता हो सकता है, क्योंकि अब पानी के जहाज बन गये है तो अपना भी नौदल चाहिये। उन्होने अपने नौदल का गठन किया। विदेशियों की नौ निर्माण कला और अपने ग्रंथों की नौ निर्माण कला की तुलना करते हुए अपने देश के अनुकूल नई नौ निर्माण कला का विद्वानों से सृजन कराया, और वैसे जहाज बनवाये। सिन्धुदुर्ग, सुवर्णदुर्ग, पद्मदुर्ग, विजयदुर्ग ऐसे जलदुर्ग बनवाये।

कितनी व्यापक दृष्टि होगी और कहाँ तक देखते होंगे। वे केवल उस समय का विचार नहीं करते थे। मात्र एक सुलतान को पराजित कर अपना स्वराज्य बनाना केवल इतना नहीं। यह शब्द वे केवल बोले नहीं है, उनकी कृति बता रही है। कितने ही ऐसे उदाहरण हैं…
शिवाजी महाराज के द्वारा संपूर्ण राष्ट्र के लिये किये गये प्रयासों की, यह राज्याभिषेक सफल परिणति है और इसलिये इसको हम शिवसाम्राज्य दिन नहीं कहते। इसको हम कहते है हिंदू साम्राज्य दिवस।

व्यक्ति के रूप में सगुण आदर्श के नाते छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन का प्रत्येक अंश हमारे लिये दिग्दर्शक है। उस चरित्र की, उस नीति की, उस कुशलता की, उस उद्देश्य के पवित्रता की आज आवश्यकता है। इस को समझकर ही अपने संघ ने ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को, शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के दिन को हिंदू साम्राज्य दिवस निश्चित किया है।
इसीलिये आज की जैसी परिस्थिति में शिवाजी महाराज के कर्तृत्व, उनके गुण, उनके चरित्र के द्वारा मिलनेवाला दिग्दर्शन हमारे लिए मार्गदर्शक है। आज भी अपने लिये अनुकरणीय है।

स्त्रोत:- हिन्दू साम्राज्य दिवस पर नागपुर में 2010 में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत का उद्बोधन
-(शिवाजी राज्याभिषेक दिवस स्वराज्य और सुशासन की विरासत – रमेश पतंगे)

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