घर वापसी अभियान के सेनानी दिलीप सिंह जूदेव “8 मार्च/जन्म-दिवस”
भारत में जो भी मुसलमान या ईसाई हैं, उन सबके पूर्वज हिन्दू ही हैं। उन्हें सम्मान सहित अपने पूर्वजों के पवित्र धर्म में शामिल करना ही ‘घर वापसी’ कहलाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद और वनवासी कल्याण आश्रम इसमें सक्रिय हैं। आठ मार्च, 1949 को जशपुर के राज परिवार में जन्मे श्री दिलीप सिंह जूदेव घर वापसी अभियान के एक प्रखर सेनानी थे।
उन्होंने रांची के सेंट जेवियर काॅलेज से बी.ए. तथा छोटा नागपुर के लाॅ काॅलेज से कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर वे अपने पारिवारिक परम्परा के अनुसार राजनीति तथा सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हो गये। जशपुर इन दिनों घने वनों से आच्छादित छत्तीसगढ़ राज्य में है। हजारों वर्ष से यहां प्रकृति पूजक वनवासी जातियां रहती हैं, जिनकी हिन्दू धर्म के साथ ही अपने राज परिवार पर भी असीम श्रद्धा है। वे अपने धर्म को ‘सरना धर्म’ कहते हैं।
भारत में जब अंग्रेज आये, तो उन्होंने इस क्षेत्र को धर्मान्तरण के लिए बहुत उर्वर समझकर यहां एक विशाल चर्च बनाया। एक ओर सेवा का पाखंड, तो दूसरी ओर बंदूक का आतंक। भोले वनवासियों का शेष भारत से संपर्क भी कम ही था। अतः क्रमशः वे ईसाई होने लगे। 1947 के बाद यद्यपि राजशाही समाप्त हो गयी; पर राजपरिवारों के प्रति लोगों की श्रद्धा बनी रही।
जूदेव राजपरिवार सदा से ही हिन्दू धर्म का संरक्षक रहा है। जब ‘वनवासी कल्याण आश्रम’ का कार्य प्रारम्भ हुआ, तो इस परिवार ने ही उन्हें छात्रावास तथा अन्य प्रकल्पों के लिए भूमि दी। अपने पिता की मृत्यु के बाद जब श्री दिलीप सिंह राजा बने, तो उन्होंने धर्मान्तरण के इस खतरे को पहचान कर ‘घर वापसी’ अभियान प्रारम्भ किया। इससे वे बहुत शीघ्र ही न केवल छत्तीसगढ़, अपितु निकटवर्ती मध्य प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा के वनवासियों में भी लोकप्रिय हो गये। लोग उन्हें ‘कुमार साहब’ कहकर सम्बोधित करते थे।
विनम्रता की प्रतिमूर्ति दिलीप सिंह जी हिन्दू हृदय सम्राट थे। उनके महल के द्वार निर्धन वनवासियों के लिए सदा खुले रहते थे। राजा होते हुए भी वे घर वापसी करने वाले पुरुष और स्त्रियों के पैर धोकर उन्हें धोती तथा जनेऊ भेंट करते थे। इस प्रकार उन्होंने लाखों लोगों को फिर से परावर्तित किया। इससे दुनिया भर के ईसाइयों में खलबली मच गयी। अतः वे उनके चरित्रहनन के प्रयास करने लगे।
उनके पिता 1970 में जनसंघ की ओर से लोकसभा के सांसद बने थे। उन दिनों देश में इंदिरा गांधी की तूती बोल रही थी। अधिकांश पुराने राजा और रजवाड़े उनके साथ थे; पर श्री जूदेव ने अपना चुनाव लड़ते हुए जनसंघ के कई अन्य प्रत्याशियों को भी आर्थिक सहायता दी।
श्री दिलीप सिंह ने 1978 में अपनी राजनीतिक यात्रा जशपुर नगरपालिका के अध्यक्ष के नाते प्रारम्भ की। फिर वे भारतीय जनता पार्टी की ओर से दो बार लोकसभा तथा तीन बार राज्यसभा के सदस्य बने। जब केन्द्र में श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी, तो उन्हें पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री बनाया गया। वे प्रायः फौजी वेश पहनते थे। इस पर उनकी रौबीली मूंछें बहुत फबती थीं। इसलिए उन्हें ‘छत्तीसगढ़ का शेर’ भी कहा जाता था।
दिसम्बर, 2012 में उनके बड़े पुत्र प्रबल प्रताप सिंह का आकस्मिक निधन हो गया। उसका विवाह भी कुछ समय पूर्व ही हुआ था। इससे श्री दिलीप सिंह अवसाद और निराशा से घिर गये। वे गुर्दे और यकृत के रोग से भी पीडि़त थे। कुछ समय बाद उनकी मां श्रीमती जयादेवी का आशीर्वाद भी उनके सिर से उठ गया। इससे वे शारीरिक और मानसिक रूप से टूट गये। इलाज के लिए पहले उन्हें रांची और फिर दिल्ली के पास गुड़गांव के एक विख्यात चिकित्सालय में भर्ती कराया गया, जहां 14 अगस्त, 2013 को उनका प्राणांत हो गया।
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