आध्यात्म समाचार

कृतज्ञ..! मै अभिभूत हूं, आप सब की प्रतिक्रियाओं से. प्रतिसाद से. उत्साह से.

कृतज्ञ..!

मै अभिभूत हूं, आप सब की प्रतिक्रियाओं से. प्रतिसाद से. उत्साह से.

‘लोकनायक श्रीराम’ इस श्रृंखला को आप जो प्रतिसाद दे रहे हैं, वह अद्भुत हैं. हिंदी, मराठी, गुजराती और बांग्ला भाषा मे, प्रतिदिन इस श्रृंखला के लेख सोशल मीडिया मे आ रहे हैं. ‘दैनिक स्वदेश’, इसे अपने सभी संस्करणों मे (ग्वालियर, लखनऊ, आग्रा, झांसी, सतना.. आदी) इसे प्रतिदिन प्रकाशित कर रहा हैं. हिंदी, मराठी, गुजराती के कुछ और समाचार पत्र भी इसे प्रकाशित कर रहे हैं. चारों भाषाओं के अनेक वेब पोर्टल्स इसे अपने पाठकों तक पहुंचा रहे हैं.

‘रंगीला रेडिओ’, इस इंटरनेट रेडिओ पर प्रतिदिन प्रातः ८ बजे और रात्री ८ बजे इसका नियमित प्रसारण हो रहा हैं, जिसे युरोप, अमरिका, खाडी के देश, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया आदी देशों मे रहने वाले हजारों भारतीय सुन रहे हैं..!

कुल मिलाकर, प्रतिदिन कुछ लाख लोग, ‘लोकनायक श्रीराम’ इस श्रृंखला के आलेखों को पढ रहे हैं. सुन रहे हैं.

यह सभी अर्थों मे अभूतपूर्व हैं..!

इसमे मेरा कुछ भी नही हैं. मैं तो वाल्मिकी रामायण के आधार से, राम कथा बता रहा हूं. मेरा मानना हैं कि श्रीराम के जीवनदर्शन का सबसे अधिकृत ग्रंथ, वाल्मिकी रामायण ही हैं. इसलिये, अनेक प्रसंगों के श्लोक मैं उधृत कर रहा हूं.

श्रीराम के जीवन का महत्वपूर्ण ध्येय हैं, आर्यावर्त को अपने नियंत्रण मे लिये हुए असुरी शक्तियों का निर्दालन करना. इन दानवी शक्तियों का केंद्र हैं, रावण. वाल्मिकी रामायण मे बालकांड के पंद्रहवें सर्ग से ही रावण का उल्लेख आता हैं. किंतू इस रावण के रुप मे, संपूर्ण दानवी शक्तियों को समाप्त करने के लिये, श्रीराम ने योजना की हैं, सामान्य नागरिकों की. और यही रामायण की विशेषता हैं.

वन मे रहने वाले नरों को (वानरों को), अर्थात वनवासी बंधुओं को श्रीराम ने संगठित किया हैं. उनको प्रशिक्षित किया हैं. उनमे आत्मविश्वास जगाया हैं. श्रीराम के रुप मे उनमे देवत्व का संचार किया हैं.

सामान्य लोगों की संगठित शक्ती ने ठाना, तो वह महाबलाढ्य ऐसी दानवी शक्ती को भी परास्त कर सकती हैं, यह श्रीराम ने रावण का निर्दालन कर के सिध्द किया हैं.

हजारों वर्षों के बाद, श्रीराम से प्रेरणा लेकर, ऐसाही उदाहरण हम सोमवार, २२ जनवरी को देखने जा रहे हैं. भारतवर्ष की सर्वसामान्य जनता की संगठित शक्ती के जबरदस्त संघर्ष से ही यह संभव होने जा रहा हैं.

इस मंगल प्रसंग पर, रामायण का यह दृष्टिकोण सामने लाने के लिये यह छोटासा प्रयास किया हैं.

आप इस श्रृंखला को अपना जो अद्भुत प्रेम दे रहे हैं, प्रतिसाद दे रहे हैं, प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं… इन सब के लिये मैं आप का हृदय से कृतज्ञ हूं..!

राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य हैं।
कोई कवि बन जाए, सहज संभाव्य हैं ॥

  • प्रशांत पोळ

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